सूरह अल बक़रा मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 286 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अलीफ़ लाम मीम.
2. यह वह अज़ीम किताब है, जिसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है. यह परहेज़गारों के लिए मुकम्मल हिदायत है.
3. जो लोग ग़ैब पर ईमान लाते हैं और तमाम फ़राईज़ के साथ पाबंदी से नमाज़ अदा करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है, उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं.
4. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जो लोग उस पर ईमान रखते हैं, जो तुम पर नाज़िल किया गया और जो तुमसे पहले नाज़िल किया गया है. और वे आख़िरत पर भी यक़ीन रखते हैं.
5. वही लोग अपने परवरदिगार की तरफ़ से हिदायत पर हैं और वही लोग कामयाबी पाने वाले हैं.
6. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनके लिए सब बराबर है. चाहे तुम उन्हें ख़बरदार करो या न करो, वे ईमान नहीं लाएंगे.
7. उनकी नाफ़रमानी की वजह से अल्लाह ने उनके दिलों और उनके कानों पर मुहर लगा दी है. और उनकी आंखों पर पर्दा पड़ा हुआ है. और उनके लिए बड़ा सख़्त अज़ाब है.
8. और कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो यह कहते हैं कि हम अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान लाए हैं. और वे ईमान वाले नहीं हैं.
9. वे लोग अल्लाह और उन लोगों को धोखा देना चाहते हैं, जो ईमान लाए हैं. हालांकि वे ख़ुद को ही धोखा दे रहे हैं और उन्हें इसका शऊर नहीं है.
10. उनके दिलों में मर्ज़ है. फिर अल्लाह ने उनके मर्ज़ को मज़ीद बढ़ा दिया. और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है, क्योंकि वे लोग झूठ बोलते थे.
11. और जब उनसे कहा जाता है कि ज़मीन में फ़साद मत करो, तो वे कहते हैं कि हम तो सिर्फ़ इस्लाह करते हैं.
12. जान लो कि बेशक यही लोग मुफ़सिद हैं, लेकिन उन्हें इसका शऊर नहीं है.
13. और जब उनसे कहा जाता है कि तुम भी ईमान लाओ, जैसे दूसरे लोग ईमान लाए हैं, तो वे कहते हैं क्या हम भी उसी तरह ईमान लाएं जैसे वे बेवकू़फ़ लोग ईमान लाए हैं. जान लो कि वे लोग ख़ुद बेवक़ूफ़ हैं, लेकिन वे जानते नहीं हैं.
14. और जब वे मुनाफ़िक़ अहले ईमान से मिलते हैं, तो कहते हैं कि हम भी ईमान लाए हैं और जब अपने शैतानों से अकेले में मिलते हैं, तो उनसे कहते हैं कि हम तुम्हारे साथ हैं. हम मुसलमानों से सिर्फ़ मज़ाक़ करते हैं.
15. अल्लाह उन मुनाफ़िक़ों को उनके मज़ाक़ की सज़ा देता है और उन्हें ढील देता है कि वह अपने अंजाम तक पहुंच जाएं. और वे अपनी सरकशी में भटक रहे हैं.
16. यही वे लोग हैं, जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही ख़रीद ली. फिर न उनकी तिजारत ने उन्हें कोई फ़ायदा पहुंचाया और न उन्होंने हिदायत ही पाई.
17. उन लोगों की मिसाल उस शख़्स की मानिन्द है, जिसने रात की तारीकी में भड़कती हुई आग जलाई और जब हर तरफ़ ख़ूब रौशनी फैल गई, तो अल्लाह ने वह नूर ले लिया और उन्हें घनघोर अंधेरे में छोड़ दिया. अब वे कुछ नहीं देखते.
18. वे लोग बहरे और गूंगे और अंधे हैं. फिर वे हक़ की तरफ़ नहीं लौटेंगे.
19. या उन लोगों की मिसाल बारिश की मानिन्द है, जो आसमान से बरस रही हो, जिसमें तारीकियां हों और गरज और बिजली की बर्क़ यानी चमक भी हो. वे लोग कड़क के सबब मौत के डर से अपने कानों में उंगलियां रख लेते हैं. और अल्लाह काफ़िरों को अहाते में लिए हुए है.
20. क़रीब है कि बिजली उनकी आंखों को चकाचौंध कर दे. जब बिजली चमके तो वे लोग उसकी रौशनी में चल पड़ें और जब अंधेरा उन पर छा जाए, तो ठहर जाएं. और अगर अल्लाह चाहता, तो उनकी सुनने और देखने की क़ूवत छीन लेता. बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
21. ऐ इंसानो ! तुम अपने परवरदिगार की इबादत किया करो, जिसने तुम्हें और उन लोगों को पैदा किया, जो तुम से पहले थे, ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ.
22. जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को फ़र्श और आसमान को छत बनाया. और आसमान से बारिश बरसाई. फिर उसके ज़रिये तुम्हारे खाने के लिए रिज़्क़ यानी फल पैदा किए. फिर तुम किसी को अल्लाह का शरीक मत ठहराओ. हालांकि तुम हक़ीक़त जानते हो.
23. और अगर तुम लोग उस कलाम के बारे में शक में मुब्तिला हो, जो हमने अपने मुख़लिस बन्दे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल किया है, तो इस जैसी कोई एक सूरत ही ले लाओ. और अल्लाह के सिवा तुम्हारे जितने भी हिमायती हैं, उन्हें भी बुला लो. अगर तुम सच्चे हो. 24. फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और हरगिज़ नहीं कर सकोगे, तो दोज़ख़ की उस आग से डरो, जिसके ईंधन इंसान और पत्थर होंगे और वह काफ़िरों के लिए तैयार की गई है.
25. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उन लोगों को ख़ुशख़बरी दे दो, जो ईमान लाए और नेक अमल करते रहे. बेशक उनके लिए जन्नत के बाग़ हैं, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. जब उन्हें उन बाग़ों में से कोई फल खाने को दिया जाएगा, तो वे कहेंगे कि यह तो वही रिज़्क़ है, जो हमें पहले दुनिया में दिया गया था. हालांकि उन्हें उनसे मिलते जुलते फल दिए जाएंगे. और जन्नत में उनके लिए पाकीज़ा बीवियां होंगी और वे लोग उसमें हमेशा रहेंगे.
26. बेशक अल्लाह कोई भी मिसाल बयान करने में हया नहीं करता, चाहे वह मच्छर की हो या हिक़ारत में उससे भी बढ़कर हो. फिर जो लोग ईमान लाए, वे जानते हैं कि यह मिसाल उनके परवरदिगार की तरफ़ से हक़ है. और जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे कहते हैं कि इस मिसाल से अल्लाह का क्या मतलब है. ऐसी मिसाल से अल्लाह बहुत से लोगों को गुमराह क़रार देता है और बहुत से लोगों को हिदायत देता है. लेकिन गुमराही में सिर्फ़ उन्हीं लोगों को छोड़ता है, जो नाफ़रमान हैं.
27. जो लोग अल्लाह से पुख़्ता अहद करने के बाद उसे तोड़ देते हैं और उस ताल्लुक़ को क़ताअ करते हैं, जिसे जोड़ने का अल्लाह ने हुक्म दिया है और ज़मीन में फ़साद फैलाते हैं. यही वे लोग हैं, जो नुक़सान उठाने वाले हैं.
28. तुम किस तरह अल्लाह से कुफ़्र करते हो. हालांकि जब तुम माओं के पेट में बेजान थे, तो अल्लाह ही ने तुम्हें ज़िन्दगी बख़्शी थी. फिर वही तुम्हें मौत देगा. फिर वही क़यामत के दिन तुम्हें दोबारा ज़िन्दा करेगा. फिर तुम्हें उसकी तरफ़ ही लौटना है.
29. वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन की तमाम चीज़ों की तख़लीक़ की. फिर वह आसमान की तरफ़ मुतावज्जे हुआ, तो तबक़ दर तबक़ सात आसमान बना दिए. और वह हर चीज़ का जानने वाला है.
30. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से फ़रमाया कि मैं ज़मीन में अपना एक ख़लीफ़ा बनाने वाला हूं, तो वे कहने लगे कि क्या तू ज़मीन में ऐसे शख़्स को ख़लीफ़ा बनाएगा, जो ज़मीन में फ़साद फैलाएगा और ख़ून बहाएगा. हालांकि हम तेरी हम्दो सना यानी तारीफ़ के साथ तस्बीह करते रहते हैं और हर वक़्त पाकीज़गी बयान करते हैं. अल्लाह ने फ़रमाया कि बेशक जो कुछ हम जानते हैं, वह तुम नहीं जानते.
31. और अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम को सब चीज़ों के नाम सिखा दिए. फिर उन्हें फ़रिश्तों के सामने पेश किया और फ़रमाया कि हमें उन चीज़ों के नाम बताओ, अगर तुम सच्चे हो.
32. फ़रिश्तों ने अर्ज़ किया कि तेरी ज़ात पाक है. हमें सिर्फ़ उतना ही इल्म है, जितना तूने सिखाया है. बेशक तू बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
33. अल्लाह ने हुक्म दिया कि ऐ आदम अलैहिस्सलाम ! तुम इन फ़रिश्तों को उन सब चीज़ों के नाम बता दो. जब आदम अलैहिस्सलाम ने फ़रिश्तों को उन चीज़ों के नाम बता दिए, तो अल्लाह ने फ़रमाया कि क्या हमने तुमसे नहीं फ़रमाया था कि हम आसमानों और ज़मीन की ग़ैबी हक़ीक़तों को जानते हैं. और हम उससे भी ख़ूब वाक़िफ़ हैं, जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम पोशीदा रखते हो.
34. और जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम अलैहिस्सलाम को सजदा करो, तो सबने सजदा किया, सिवाय इबलीस के. उसने इनकार और तकब्बुर किया और वह काफ़िरों में से हो गया.
35. और हमने हुक्म दिया कि ऐ आदम अलैहिस्सलाम ! तुम अपनी बीवी के साथ जन्नत में रहो और तुम दोनों उसमें से जो चाहो, जहां से चाहो इत्मीनान से खाओ व पियो. लेकिन उस शजर के क़रीब मत जाना, वरना फिर तुम ज़ालिमों में से हो जाओगे.
36. फिर शैतान ने आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा को उस दरख़्त के हवाले से बहका दिया और उन्हें जन्नत से निकलवा दिया, जिसमें वे चैन व सुकून से रहते थे. और हमने हुक्म दिया कि तुम सब ज़मीन पर उतर जाओ. तुम एक दूसरे के दुश्मन रहोगे. और तुम्हें एक मुद्दत तक ज़मीन में ही रहना है और वहीं गुज़र बसर करना है.
37. फिर आदम अलैहिस्सलाम ने अपने परवरदिगार से चन्द अल्फ़ाज़ सीखे. फिर अल्लाह ने उनकी तौबा क़ुबूल कर ली. बेशक वह बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला बड़ा मेहरबान है.
38. हमने उन्हें हुक्म दिया कि तुम सब जन्नत से ज़मीन पर उतर जाओ. फिर जब तुम्हारे पास हमारी तरफ़ से कोई हिदायत आए, तो उसकी पैरवी करना. जो हमारी हिदायत की पैरवी करेगा, तो उसे न कोई ख़ौफ़ होगा और न वह ग़मगीन होगा.
39. और जो लोग कुफ़्र करेंगे और हमारी आयतों को झुठलाएंगे, तो वही असहाबे दोज़ख़ होंगे और वे उसमें हमेशा रहेंगे.
40. ऐ बनी इस्राईल यानी याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद ! तुम हमारी नेअमतों का ज़िक्र करो यानी उन्हें याद करो, जो हमने तुम्हें अता की हैं. और तुम हमसे किया अपना अहद पूरा करो, तो हम तुमसे किया अपना वादा पूरा करेंगे. और हमसे डरते रहो.
41. और इस किताब यानी क़ुरआन पर ईमान लाओ, जो हमने अपने रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
पर नाज़िल किया है. यह उन किताबों की तसदीक़ करता है, जो तुम्हारे पास हैं. और तुम ही सबसे पहले इससे कुफ़्र मत करो और हमारी आयतों को थोड़ी सी क़ीमत पर फ़रोख़्त न करो. और हमसे डरते रहो.
42. और हक़ को बातिल के साथ मत मिलाओ और न हक़ को जान बूझकर छुपाओ.
43. और तुम पाबंदी से नमाज़ पढ़ा करो और ज़कात दिया करो और रुकू करने वालों के साथ रुकू किया करो.
44. क्या तुम दूसरे लोगों को नेकी करने का हुक्म देते हो और ख़ुद को भूल जाते हो. हालांकि तुम मुसलसल अल्लाह की किताब की तिलावत करते हो. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
45. और मुसीबत के वक़्त सब्र और नमाज़ के ज़रिये अल्लाह से मदद चाहो. और बेशक यह नमाज़ बड़ी दुश्वार है. लेकिन उन ख़ाक़सारों के लिए नहीं, जिनके दिल झुके हुए हैं यानी जिनके दिलों में मुहब्बत बसी है.
46. जिन्हें यक़ीन है कि वे अपने परवरदिगार से मुलाक़ात करेंगे और उसकी बारगाह में लौटाये जाएंगे.
47. ऐ बनी इस्राईल यानी याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद ! तुम हमारी उन नेअमतों का ज़िक्र करो यानी याद करो, जो हमने तुम्हें अता की हैं. और यह भी याद करो कि हमने तुम्हें तमाम आलम के लोगों पर फ़ज़ीलत बख़्शी.
48. और उस दिन से डरते रहो, जब कोई किसी दूसरे की तरफ़ से कोई बदला न दे सकेगा और न उसके हक़ में सिफ़ारिश क़ुबूल की जाएगी. और न उसकी तरफ़ से कोई मुआवज़ा लिया जाएगा और न उसकी मदद की जाएगी.
49. और वह वक़्त भी याद करो कि जब हमने तुम्हें फ़िरऔन के लोगों से निजात दी. वे तुम्हें सख़्त अज़ीयत और अज़ाब देते थे. वे तुम्हारे बेटों को ज़िबह कर दिया करते थे और तुम्हारी औरतों को अपनी ख़िदमत के लिए ज़िन्दा रहने देते थे. और उसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम्हारे सब्र की सख़्त आज़माइश थी.
50. और वह वक़्त भी याद करो कि जब हमने तुम्हारे लिए दरिया को फाड़ दिया. फिर हमने तुम्हें निजात दी और फ़िरऔन के लोगों को ग़र्क़ कर दिया. और तुम यह सब देख रहे थे.
51. और वह वक़्त भी याद करो कि जब हमने मूसा अलैहिस्सलाम से चालीस रातों का वादा किया था. फिर तुमने उनके एतिकाफ़ पर जाने के बाद एक बछड़े को अपना सरपरस्त बना लिया. और तुम बड़े ज़ालिम थे.
52. फिर हमने उसके बाद भी तुम्हें मुआफ़ कर दिया, ताकि तुम शुक्रगुज़ार बन जाओ.
53. और वह वक़्त भी याद करो कि जब हमने मूसा अलैहिस्सलाम को किताब यानी तौरात अता की और हक़ व बातिल को जुदा करने वाले अहकाम दिए, ताकि तुम हिदायत पा सको.
54. और वह वक़्त भी याद करो कि जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम से कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! तुमने बछड़े को अपना सरपरस्त बनाकर अपनी जानों पर बड़ा जु़ल्म किया है, तो अब तुम अपने ख़ालिक़ की बारगाह में तौबा करो और अपनी नफ़्सों को क़त्ल कर दो. तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है. फिर अल्लाह ने तुम्हारी तौबा क़ुबूल कर ली. बेशक वह बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला बड़ा मेहरबान है.
55. और वह वक़्त भी याद करो कि जब तुमने मूसा अलैहिस्सलाम से कहा था कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! हम तुम पर उस वक़्त तक हरगिज़ ईमान नहीं लाएंगे, जब तक अल्लाह को ख़ुद अपनी आंखों से न देख लें. फिर बिजली की कड़क ने तुम्हें अपनी गिरफ़्त में ले लिया और तुम देखते ही रह गए. 56. फिर हमने तुम्हें मौत के बाद दोबारा ज़िन्दा कर दिया, ताकि तुम शुक्रगुज़ार बन जाओ.
57. और हमने तुम पर बादलों का साया किया और हमने तुम पर वादी तीह में मन और सलवा नाज़िल किया कि तुम हमारा दिया हुआ पाक रिज़्क़ खाओ. और उन्होंने नाफ़रमानी करके हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा, लेकिन वे अपनी जानों पर ज़ुल्म करते रहे.
58. और वह वक़्त भी याद करो कि जब हमने कहा कि इस बस्ती में दाख़िल हो जाओ और इसमें जहां से चाहो ख़ूब जी भर कर खाओ व पियो. और जब उस बस्ती के दरवाज़े से गुज़रने लगो, तो सजदा करते हुए गुज़रना और यह कहते हुए जाना कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हम अपनी सब ख़ताओं की बख़्शीश चाहते हैं, तो हम तुम्हारी गुज़श्ता सभी ख़तायें मुआफ़ कर देंगे. और हम अनक़रीब ही मोहसिनों पर मज़ीद फ़ज़ल व करम करेंगे.
59. फिर उन ज़ालिमों ने उस क़ौल को ही बदल दिया, जो उनसे कहा गया था. और दूसरी बात कहनी शुरू कर दी, जो उनसे नहीं कही गई थी. फिर हमने उन ज़ालिमों पर आसमान से अज़ाब नाज़िल किया, क्योंकि वे नाफ़रमानी कर रहे थे.
60. और वह वक़्त भी याद करो कि जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम के लिए पानी मांगा, तो हमने कहा कि तुम अपना असा पत्थर पर मारो. असा मारते ही उसमें से बारह चश्मे फूट पड़े. और सब लोगों ने अपना-अपना घाट पहचान लिया. और हमने कहा कि अल्लाह के दिए हुए रिज़्क़ में से ख़ूब खाओ और पियो और ज़मीन में फ़साद करते न फिरो.
61. और वह वक़्त भी याद करो कि जब तुमने मूसा अलैहिस्सलाम से कहा कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! हम सिर्फ़ एक ही खाने यानी मन और सलवा पर हरगिज़ सब्र नहीं कर सकते. तुम अपने परवरदिगार से दुआ मांगो कि ज़मीन में उगने वाली चीज़ों में से साग और तरकारी और गेहूं और मसूर और प्याज़ उगा दे. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्या तुम बेहतर चीज़ के बदले अदना चीज़ चाहते हो. अगर तुम यही चाहते हो, तो तुम किसी भी शहर में चले जाओ. बेशक वहां तुम्हारे लिए वह सब होगा, जो कुछ तुम चाहते हो. और उन पर ज़िल्लत और मोहताजी मुसल्लत कर दी गई और वे लोग अल्लाह के ग़ज़ब में आ गए थे. यह इसलिए हुआ कि वे लोग अल्लाह की निशानियों से कुफ़्र करते थे और नबियों को नाहक़ क़त्ल करने लगे थे. और यह इस वजह से भी हुआ कि वे नाफ़रमानी करते थे और वे हद से तजावुज़ करने वालों में से थे.
62. बेशक जो लोग बज़ाहिर ईमान लाए हैं और जो यहूदी और नसरानी यानी ईसाई या साबी यानी लामज़हब हैं, उनमें जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो उनके लिए उनके परवरदिगार के पास अज्र है. और उन्हें न कोई ख़ौफ होगा और न वे ग़मगीन होंगे.
63. और वह वक़्त याद करो कि जब हमने तुमसे तौरात पर अमल करने का अहद लिया था और हमने कोहे तूर को तुम्हारे ऊपर उठा लिया था और हुक्म दिया था कि जो कुछ हमने तुम्हें अता किया है, उसे मज़बूती से पकड़े रहो और जो कुछ इस किताब यानी तौरात में है, उसे याद रखो, ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ.
64. फिर उस अहद के बाद भी तुमने मुंह फेर लिया. और अगर अल्लाह का फ़ज़ल और रहमत न होती, तो तुम नुक़सान उठाने वालों में से हो जाते.
65. ऐ यहूदियो ! और बेशक तुम अपनी क़ौम के उन लोगों से ख़ूब वाक़िफ़ हो, जिन्होंने हफ़्ते के दिन अहकाम के बारे में सरकशी की थी, तो हमने उनसे फ़रमाया कि बंदर बन जाओ कि तुम धिक्कारे जाते रहो.
66. फिर हमने इस वाक़िये को उस वक़्त मौजूद लोगों और उनके बाद आने वाले लोगों के लिए इबरत और परहेज़गारों के लिए नसीहत बना दिया.
67. और वह वक़्त याद करो कि जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम से कहा कि बेशक अल्लाह तुम लोगों को हुक्म देता है कि तुम एक गाय ज़िबह करो. वे लोग कहने लगे कि क्या तुम हमसे मज़ाक़ कर रहे हो. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं इस बात से अल्लाह की पनाह चाहता हूं कि मैं जाहिलों में से हो जाऊं.
68. वे लोग कहने लगे कि तुम अपने अल्लाह से दुआ मांगो कि हमें बता दे कि वह गाय कैसी हो. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक अल्लाह फ़रमाता है कि वह गाय न तो बहुत बूढ़ी हो और न बछिया हो, बल्कि दरम्यानी हो. फिर तुम उसकी तामील करो, जिसका तुम्हें हुक्म दिया गया है. 69. वे लोग कहने लगे कि तुम अपने अल्लाह से दुआ मांगो कि हमें बता दे कि उसका रंग कैसा हो. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक अल्लाह फ़रमाता है कि वह गाय गहरे ज़र्द रंग की हो, जो देखने वाले को अच्छी लगे.
70. वे लोग कहने लगे कि तुम अपने अल्लाह से दुआ मांगो कि हमें यह भी बता दे कि वह गाय और कैसी हो, क्योंकि वह गाय तो और गायों में मिलजुल गई और अल्लाह ने चाहा, तो हम ज़रूर हिदायत याफ़्ता हो जाएंगे.
71. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक अल्लाह फ़रमाता है कि वह ऐसी आला गाय हो, जिससे न ज़मीन में खेती के लिए हल चलवाया जाता हो और न खेती को सींचती हो. वह बिल्कुल तंदुरुस्त हो. उसमें कोई दाग़ भी न हो. वे लोग कहने लगे कि तुमने अब हक़ बयान किया है. फिर उन्होंने गाय ज़िबह की. हालांकि उनसे उम्मीद नहीं थी कि वे लोग ऐसा करेंगे.
72. और जब तुमने एक शख़्स को क़त्ल दिया. फिर आपस में झगड़ने लगे. और अल्लाह उसे ज़ाहिर करने वाला था, जिसे तुम छुपा रहे थे.
73. फिर हमने हुक्म दिया कि उस मुर्दे पर गाय के गोश्त का एक टुकड़ा मारो. इसी तरह अल्लाह मुर्दों को ज़िन्दा करेगा. और वह तुम्हें अपनी क़ुदरत की निशानियां दिखाता है, ताकि तुम समझ सको.
74. फिर उसके बाद भी तुम्हारे दिल सख़्त हो गए. इतने सख़्त जैसे पत्थर हों या उससे भी ज़्यादा सख़्त हो चुके हैं. और बेशक पत्थरों में कुछ ऐसे भी हैं, जिनसे नहरें फूट निकलती हैं और बेशक उनमें से कुछ पत्थर ऐसे भी हैं, जिनमें शिगाफ़ पड़ जाती है, तो उनसे पानी निकल पड़ता है और बेशक उनमें से कुछ पत्थर ऐसे भी हैं, जो अल्लाह के ख़ौफ़ से गिर पड़ते हैं. और अल्लाह उन आमाल से ग़ाफ़िल नहीं, जो तुम किया करते हो.
75. ऐ मुसलमानो ! क्या तुम यह तवक़्क़ो करते हो कि वे यहूदी तुम पर यक़ीन कर लेंगे, जबकि उनमें से एक फ़रीक़ के लोग ऐसे भी थे, जो अल्लाह का कलाम यानी तौरात सुनते थे. फिर उसे समझने के बाद ख़ुद बदल देते थे. और वे जानते थे कि हक़ीक़त क्या है.
76. और जब वे अहले ईमान से मिलते हैं, तो उनसे कहते हैं कि हम भी तुम्हारी तरह हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाए हैं. और जब अकेले होते हैं, तो आपस में कहते हैं कि क्या तुम उन मुसलमानों से आख़िरी नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रिसालत और शान के बारे में वे सब बातें बयान कर देते हो, जो अल्लाह ने तुम्हें तौरात के ज़रिये ज़ाहिर की हैं, ताकि वे तुम्हारे परवरदिगार की बारगाह में तुम पर हुज्जत क़ायम करें. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
77. क्या वे लोग इतना भी नहीं जानते कि अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ वे लोग पोशीदा रखते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं.
78. और उन यहूदियों में से कुछ अनपढ़ हैं, जिन्हें तौरात के अहकाम का कोई इल्म नहीं है. वे लोग अपने मतलब की बातों के सिवा कुछ नहीं समझते और वे महज़ वहम और गुमान में मुब्तिला रहते हैं.
79. फिर ऐसे लोगों के लिए बड़ी तबाही है, जो अपने हाथों से अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ किताब लिखते हैं. फिर वे कहते हैं कि यह अल्लाह की तरफ़ से है, ताकि उसके ज़रिये कुछ पैसे कमा सकें. फिर उनके हाथों की तहरीर भी उनके लिए तबाही का ज़रिया है और उसकी कमाई भी तबाही है.
80. और वे कहते हैं कि उन्हें दोज़ख़ की आग हरगिज़ नहीं छुएगी, सिवाय गिनती के कुछ दिनों के. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या तुमने अल्लाह से वादा ले रखा है कि वह अपने वादे की ख़िलाफ़वर्ज़ी नहीं करेगा या वे लोग अल्लाह के बारे में ऐसी बातें कह रहे हो, जो वे ख़ुद नहीं जानते.
81. आग तुम्हें क्यों नहीं छुएगी. जो लोग बुराई इख़्तियार करते हैं और उनकी ख़तायें उन्हें अतराफ़ से घेर लेती हैं. फिर वही लोग असहाबे दोज़ख़ हैं. वे उसमें हमेशा रहेंगे.
82. और जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो वही लोग असहाबे जन्नत हैं. वे उसमें हमेशा रहेंगे.
83. और वह वक़्त याद करो कि जब हमने बनी ईसराइल से पुख़्ता अहद लिया था कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करना. और वालिदैन और रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों के साथ अहसान यानी अच्छा सुलूक करना और आम लोगों के साथ भी भलाई करना. और पाबंदी से नमाज़ पढ़ना और ज़कात देना. फिर तुममें से कुछ लोगों के सिवा सब अपने अहद से फिर गए और तुम लोग हक़ से गुरेज़ करने वाले हो.
84. और जब हमने तुमसे यह अहद भी लिया था कि तुम आपस में एक दूसरे का ख़ून नहीं बहाओगे और न अपने लोगों को उनकी बस्तियों से निकालोगे. फिर तुमने इक़रार किया था और तुम ख़ुद उसकी गवाही भी देते हो.
85. फिर तुम ही वे लोग हो, जो अपनों को क़त्ल करते हो और अपनों में से एक फ़रीक़ को उनके इलाक़े से निकालते हो. और उनके ख़िलाफ़ गुनाह व ज़्यादती में उनके दुश्मनों की मदद करते हो. और अगर वे क़ैदी बनकर तम्हारे पास आते हैं, तो उनका फ़िदया देकर उन्हें छुड़ा लेते हो. हालांकि उन्हें वतन से निकालना तुम्हारे लिए हराम कर दिया गया था. फिर क्या तुम अल्लाह की किताब के कुछ हिस्सों पर ईमान रखते हो और कुछ हिस्सों से कुफ़्र करते हो. फिर तुममें से जो लोग ऐसा करेंगे, तो उसकी सज़ा इसके सिवा और क्या हो सकती है कि वे दुनिया की ज़िन्दगी में रुसवा हों और क़यामत के दिन सख़्त अज़ाब की तरफ़ लौटाए जाएं. और अल्लाह उन आमाल से ग़ाफ़िल नहीं, जो तुम किया करते हो.
86. यही वे लोग हैं, जिन्होंने आख़िरत के बदले दुनिया की ज़िन्दगी ख़रीद ली. फिर न उनके अज़ाब में कमी की जाएगी और न उन्हें मदद दी जाएगी.
87. और बेशक हमने मूसा अलैहिस्सलाम को किताब यानी तौरात अता की और उनके बाद हमने बहुत से रसूलों को भेजा. और मरयम अलैहिस्सलाम के बेटे ईसा अलैहिस्सलाम को भी रौशन निशानियां अता कीं. और हमने पाक रूहुल क़ुदुस यानी जिब्रईल अलैहिस्सलाम के ज़रिये उनकी ताईद व मदद की. फिर जब कोई रसूल तुम्हारे पास ऐसा हुक्म लाया, जो तुम्हारी ख़्वाहिशों के ख़िलाफ़ था, तो तुमने तकब्बुर किया. फिर तुमने कुछ पैग़म्बरों को झुठला दिया और कुछ को क़त्ल कर दिया.
88. और यहूदी कहने लगे कि हमारे दिलों पर ग़िलाफ़ चढ़ा हुआ है. ऐसा नहीं है, बल्कि उनके कुफ़्र की वजह से अल्लाह ने उन पर लानत की है. इसलिए बहुत कम लोग ही ईमान लाते हैं.
89. और जब उनके पास अल्लाह की तरफ़ से किताब यानी क़ुरआन आया, जो उस किताब यानी तौरात की तसदीक़ करता है, जो उनके पास मौजूद थी. हालांकि इससे पहले यहूदी कुफ़्र करने वाले लोगों के मुक़ाबले में उसी रसूल के वसीले से फ़तहयाब होने की दुआएं मांगा करते थे. फिर जब उनके पास वही रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और क़ुरआन आ गए, जिन्हें वे पहले से ही पहचानते थे, तो उन्होंने उनसे कुफ़्र किया यानी उन्हें मानने से ही इनकार कर दिया. फिर ऐसे काफ़िरों पर अल्लाह की लानत है.
90. कितनी बुरी चीज़ के बदले में उन्होंने अपनी जानों को बेच दिया कि वे लोग अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल क़ुरआन से कुफ़्र कर रहे हैं, सिर्फ़ इस हसद में कि अल्लाह अपने फ़ज़ल से अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है वही नाज़िल करता है. फिर वे लोग अल्लाह के ग़ज़ब दर ग़ज़ब की गिरफ़्त में आ गए. और काफ़िरों के लिए रुसवा करने वाला अज़ाब है.
91. और जब उनसे कहा जाता है कि तुम इस किताब यानी क़ुरआन पर ईमान लाओ, जो अल्लाह ने अब नाज़िल किया है, तो वे लोग कहते हैं कि हम सिर्फ़ उसी किताब यानी तौरात पर ईमान रखते हैं, जो हम पर नाज़िल की गई थी और उसके अलावा सबसे कुफ़्र करते हैं. हालांकि वह क़ुरआन बरहक़ है और उस किताब तौरात की तसदीक़ करता है, जो उनके पास है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि इससे पहले तुम अल्लाह के नबियों को क्यों क़त्ल करते रहे हो, अगर तुम वाक़ई अपनी किताब यानी तौरात पर ईमान रखते हो.
92. और तुम्हारे पास ख़ुद मूसा अलैहिस्सलाम वाज़ेह निशानियां लाए थे. फिर भी तुमने उनके पीछे बछड़े को अपना सरपरस्त बना लिया और तुम लोग ज़ालिम हो.
93. और वह वक़्त याद करो कि जब हमने तुमसे अहद लिया और तुम्हारे ऊपर कोहे तूर को उठा लिया और हमने हुक्म दिया कि तौरात को मज़बूती से थामे रखो, जो हमने तुम्हें अता किया है और हमारे अहकाम ग़ौर से सुनो. फिर वे लोग कहने लगे कि हमने सुन लिया है, लेकिन उन्होंने माना नहीं. और उनके दिलों में उनके कुफ़्र की वजह से बछड़े की उलफ़त बसा दी गई थी. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ये बातें बहुत ही बुरी हैं, जिनका हुक्म तुम्हें तुम्हारा नाम नेहाद ईमान दे रहा है. अगर तुम उन पर ईमान रखते हो.
94. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर आख़िरत का घर अल्लाह के नज़दीक सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही मख़सूस है और लोगों के लिए नहीं है, तो तुम मौत की तमन्ना करो, अगर तुम सच्चे हो.
95. और वे लोग मौत की तमन्ना कभी नहीं करेंगे. उन गुनाहों की वजह से जो वे अपने हाथों आगे भेज चुके हैं.
और अल्लाह ज़ालिमों से ख़ूब वाक़िफ़ है.
96. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक तुम उन्हें सब लोगों से ज़्यादा ज़िन्दगी जीने की हिर्स में मुब्तिला पाओगे और शिर्क करने वालों में भी हर शख़्स चाहता है कि काश ! उसे हज़ार बरस की उम्र मिल जाए. अगर उसे इतनी लम्बी उम्र मिल भी जाए, तो भी वह उसे अज़ाब से नहीं बचा सकती. और अल्लाह उन आमाल को देख रहा है, जो वे किया करते हैं.
97. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि जो जिब्रईल अलैहिस्सलाम का दुश्मन है, वह जान ले कि बेशक जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने क़ुरआन को तुम्हारे दिल में अल्लाह के हुक्म से नाज़िल किया है, जो पहले की किताबों की भी तसदीक़ करने वाला है और मोमिनों के लिए हिदायत और ख़ुशख़बरी है.
98. जो शख़्स अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिब्रईल और मीकाईल का दुश्मन हो, तो बेशक अल्लाह भी उन काफ़िरों का दुश्मन है.
99. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक हमने तुम पर रौशन आयतें नाज़िल की हैं और नाफ़रमानों के सिवा उनसे कोई कुफ़्र नहीं कर सकता.
100. और क्या हमेशा ऐसा नहीं होता कि जब भी वे लोग कोई अहद करते हैं, तो उनका एक फ़रीक़ उसे तोड़ देता है, उनमें से बहुत से लोग ईमान नहीं रखते.
101. और जब उनके पास अल्लाह की तरफ़ से रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आए, जो उस किताब यानी तौरात की तसदीक़ करते हैं, जो उनके पास पहले से मौजूद थी. फिर उन्हीं अहले किताब में से एक फ़रीक़ ने अल्लाह की किताब को अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया, गोया वे उसे जानते ही न हों. यानी उसमें आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे में क्या हिदायत दी गई थी.
102. और वे यहूदी उन चीज़ों के पैरोकार हो गए थे, जो सुलेमान अलैहिस्सलाम की बादशाहत के ज़माने में शैतान पढ़ा करते थे. हालांकि सुलेमान अलैहिस्सलाम ने कुफ़्र नहीं किया, लेकिन शैतानों ने कुफ़्र किया. वे लोगों को जादू सिखाते थे. और वे उस इल्म के पीछे भी लग गए, जो बाइबिल में हारूत और मारूत नाम के दो फ़रिश्तों पर नाज़िल किया गया था. वे दोनों किसी को कुछ नहीं सिखाते थे जब तक कि यह न कह देते कि हम तो सिर्फ़ आज़माइश के लिए हैं. फिर तुम इस पर अमल करके काफ़िर न बनो. इसके बावजूद वे यहूदी उन दोनों से ऐसी चीज़ें सीखते, जिसके ज़रिये वे शौहर और बीवी के दरम्यान फ़र्क़ डाल देते. हालांकि वे उसके ज़रिये किसी को भी नुक़सान नहीं पहुंचा सकते थे, जब तक कि अल्लाह का हुक्म न हो. और वे लोग ऐसी चीज़ें सीखते हैं, जो उन्हें न नुक़सान पहुंचाएंगी और न उन्हें कोई नफ़ा देंगी. और बेशक वे लोग यह भी जानते थे कि जो जादू या टोने का ख़रीददार बना, तो उसके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं होगा. और वह बहुत ही बुरी चीज़ है, जिसके बदले में उन्होंने अपनी जानों को बेच दिया. काश ! वे हक़ीक़त जानते.
103. और अगर वे लोग ईमान लाते और परहेज़गारी इख़्तियार करते, तो अल्लाह की बारगाह से मिलने वाला सवाब ज़्यादा बेहतर होता. अगर वे लोग जानते.
104. ऐ ईमान वालो ! तुम रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुख़ातिब होकर ‘रआना’ यानी ‘हमारी रिआयत करो’ न कहा करो, बल्कि ‘उनज़ुरना’ यानी ‘हम पर नज़रे तवज्जो रखो’ कहा करो. और ग़ौर से सुना करो और काफ़िरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है.
105. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अहले किताब के काफ़िर और मुशरिक यह नहीं चाहते कि तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर कोई भलाई नाज़िल हो. और अल्लाह जिसे चाहता है, उसे अपनी रहमत के लिए मख़सूस कर लेता है. और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला है.
106. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम जब कोई आयत मंसूख़ कर देते हैं या उसे भुला देते हैं, तो उससे बेहतर या वैसी ही कोई और आयत ले आते हैं. क्या तुम नहीं जानते कि बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
107. क्या तुम नहीं जानते कि आसमानों और ज़मीन की बादशाहत अल्लाह ही की है. और अल्लाह के सिवा तुम्हारा न कोई सरपरस्त है और न कोई मददगार.
108. ऐ मुसलमानो ! क्या तुम चाहते हो कि तुम भी अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से उसी तरह सवाल करो, जैसे इससे पहले मूसा अलैहिस्सलाम से सवाल किए गए थे. और जिसने ईमान के बदले कुफ़्र इख़्तियार किया, तो बेशक वह सीधे रास्ते से भटक गया.
109. ऐ मुसलमानो ! अहले किताब में से बहुत से लोग यह चाहते हैं कि तुम्हारे ईमान लाने के बाद फिर से तुम्हें कुफ़्र की तरफ़ ले आएं. उस हसद की वजह से जो उनके दिलों में है, जबकि हक़ उन पर ज़ाहिर हो चुका है. फिर तुम उन्हें मुआफ़ कर दो और दरगुज़र करो, यहां तक कि अल्लाह अपना हुक्म भेज दे. बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
110. और तुम पाबंदी से नमाज़ पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और तुम अपने लिए जो नेकी आगे भेजोगे, उसे अल्लाह के हुज़ूर में पा लोगे. जो आमाल तुम करते हो, बेशक अल्लाह उसे देख रहा है.
111. और अहले किताब कहते हैं कि जन्नत में हरगिज़ कोई भी दाख़िल नहीं होगा सिवाय इसके कि वह यहूदी हो या नसरानी यानी ईसाई हो. यह उनकी बदगुमानी है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अपनी दलील पेश करो. अगर तुम सच्चे हो.
112. क्यों नहीं, जिसने अपना चेहरा अल्लाह की बारगाह में झुका दिया और मोहसिन भी रहा, तो उसके लिए उसका अज्र उसके परवरदिगार के पास है. ऐसे लोगों को न कोई ख़ौफ़ होगा और न वे ग़मगीन होंगे.
113. और यहूदी कहते हैं कि नसरानियों यानी ईसाइयों के दीन की बुनियाद किसी अक़ीदे पर नहीं है और नसरानी यानी ईसाई कहते हैं कि यहूदियों के दीन की बुनियाद किसी अक़ीदे पर नहीं है. हालांकि वे सब अल्लाह की नाज़िल की हुई किताबों की तिलावत करते हैं. इसी तरह वे मुशरिक भी जिनके पास कोई इल्म नहीं है, ऐसी बातें किया करते हैं. फिर अल्लाह उनके दरम्यान क़यामत के दिन फ़ैसला कर देगा, जिसमें वे लोग इख़्तिलाफ़ किया करते हैं.
114. और उससे बढ़कर कौन ज़ालिम होगा, जो अल्लाह की मस्जिदों में उसके नाम का ज़िक्र किए जाने से लोगों को रोक दे और उन्हें वीरान करने की कोशिश करे. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था. उन्हें तो अल्लाह से डरते हुए मस्जिदों में दाख़िल होना चाहिए था. उनके लिए दुनिया में भी रुसवाई है और आख़िरत में भी बड़ा अज़ाब है.
115. और मशरिक़ और मग़रिब सब अल्लाह ही का है. फिर तुम जिधर भी रुख़ करो, वहां अल्लाह ही अल्लाह है. बेशक वह बड़ा वुसअत वाला साहिबे इल्म है.
116. और वे लोग कहने लगे कि अल्लाह ने अपने लिए औलाद बनाई है. हालांकि वह इससे पाक है, बल्कि जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है सब उसी का है और सब उसी के फ़रमाबरदार हैं.
117. अल्लाह ही आसमानों और ज़मीन को वजूद में लाने वाला है. और जब वह किसी काम को करने का फ़ैसला करता है, तो उसके बारे में सिर्फ़ इतना फ़रमाता है कि ‘हो जा’, तो फिर वह ‘हो जाता’ है.
118. और इल्म न रखने वाले लोग कहते हैं कि अल्लाह हमसे कलाम क्यों नहीं करता या हमारे पास कोई निशानी क्यों नहीं आती. इसी तरह उनसे पहले के लोगों ने भी ऐसी ही बातें कही थीं. उन सबके दिल एक जैसे हैं. हमने उस क़ौम के लिए अपनी क़ुदरत की निशानियां वाज़ेह कर दीं, जो यक़ीन रखती है.
119. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक हमने तुम्हें हक़ के साथ जन्नत की बशारत देने वाला और अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर बनाकर भेजा है. और असहाबे जहन्नुम के बारे में तुमसे कुछ नहीं पूछा जाएगा.
120. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और यहूदी और नसरानी यानी ईसाई तुमसे उस वक़्त तक राज़ी नहीं होंगे, जब तक तुम उनकी मिल्लत यानी मज़हब की पैरवी न करो. तुम कह दो कि बेशक अल्लाह की हिदायत ही हक़ीक़ी हिदायत है. और अगर तुम इल्म यानी क़ुरआन आने के बाद उनकी ख़्वाहिशों की पैरवी करोगे, तो फिर तुम्हारे लिए अल्लाह के ग़ज़ब से बचाने वाला न कोई सरपरस्त होगा और न कोई मददगार.
121. कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें हमने किताब अता की है, तो वे उसकी इस तरह तिलावत करते हैं जैसा उसकी तिलावत का हक़ है, वही लोग इस पर ईमान रखते हैं. और जो इससे कुफ़्र करते हैं, तो वही लोग नुक़सान उठाने वाले हैं.
122. ऐ बनी इस्राईल यानी याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद ! हमारी उन नेअमतों का ज़िक्र करो, जो हमने तुम्हें अता कीं. औरह यह कि हमने तुम्हें तमाम आलम के लोगों पर फ़ज़ीलत बख़्शी.
123. और उस दिन से डरो, जिस दिन कोई किसी दूसरे की जगह कोई बदला नहीं दे सकेगा. और न उससे कोई मुआवज़ा क़ुबूल किया जाएगा और न कोई सिफ़ारिश ही नफ़ा पहुंचा सकेगी और न उन्हें कोई मदद दी जाएगी.
124. और वह वक़्त याद करो कि जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम को उनके परवरदिगार ने चन्द बातों में आज़माया, तो उन्होंने उन सबको पूरा कर दिया. अल्लाह ने फ़रमाया कि हम तुम्हें लोगों का इमाम बनाने वाले हैं. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि क्या मेरी औलाद में से भी ? अल्लाह ने फ़रमाया कि हां, लेकिन हमारा यह वादा ज़ालिमों तक नहीं पहुंचता.
125. और वह वक़्त भी याद करो कि जब हमने ख़ाना ए काबा को लोगों के सवाब और अमन की जगह बनाया और हुक्म दिया गया कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम की जगह को नमाज़ का मक़ाम बनाओ और इब्राहीम अलैहिस्सलाम और इस्माईल अलैहिस्सलाम से अहद लिया कि हमारे इस घर को तवाफ़ करने वालों और ऐतकाफ़ करने वालों और रुकू व सजदा करने वालों के लिए पाक साफ़ रखना.
126. और वह वक़्त भी याद करो कि जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! इसे अमन का शहर बना दे और इसके बाशिन्दों को फलों का रिज़्क़ अता कर, जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान लाए हैं. अल्लाह ने फ़रमाया कि जो कुफ़्र करेगा, उसे भी दुनिया में चन्द रोज़ फ़ायदा पहुंचाएंगे. फिर आख़िरत में उसे मजबूर करके दोज़ख़ की तरफ़ लौटा दिया जाएगा. और वह बहुत बुरी जगह है.
127. और वह वक़्त याद करो कि जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम और इस्माईल अलैहिस्सलाम ख़ाना ए काबा की बुनियादें उठा रहे थे और दुआ मांग रहे थे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमारी ख़िदमत क़ुबूल फ़रमा. बेशक तू ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
128. ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें मुसलमान यानी फ़रमाबरदार बना और हमारी औलाद से भी एक उम्मत को मुसलमान यानी फ़रमाबरदार बना और हमें हज का तरीक़ा सिखा दे और हमारी तौबा क़ुबूल फ़रमा. बेशक तू बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला बड़ा मेहरबान है.
129. ऐ हमारे परवरदिगार ! और उनमें उन्हीं में से एक रसूल को भेज दे, जो उन्हें तेरी आयतें पढ़कर सुनाए और किताब और हिकमत की तालीम दे. और उनके नफ़्स को पाक कर दे. बेशक तू बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
130. और कौन है, जो इब्राहीम अलैहिस्सलाम के दीन से मुंह फेरे सिवाय उसके जो ख़ुद को अहमक़ बनाए. और बेशक हमने उन्हें दुनिया में भी मुंतख़िब कर लिया और बेशक आख़िरत में भी वे स्वालिहीन बन्दों में से होंगे.
131. जब उनसे उनके परवरदिगार ने फ़रमाया कि हमारे सामने सर झुकाओ, तो उन्होंने अर्ज़ किया कि तमाम आलमों के परवरदिगार की बारगाह में सर झुकाते हैं.
132. और इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपनी औलाद को वसीयत की और याक़ूब अलैहिस्सलाम ने भी यही कहा कि ऐ मेरे बेटों ! अल्लाह ने तुम्हारे लिए इसी दीन यानी इस्लाम को पसंद किया है. फिर तुम मरते दम तक मुसलमान ही रहना.
133. क्या तुम उस वक़्त मौजूद थे, जब याक़ूब अलैहिस्सलाम को मौत आई. उस वक़्त उन्होंने अपने बेटों से पूछा कि तुम मेरे बाद किसकी इबादत करोगे, तो वे कहने लगे कि हम आपके माबूद और आपके बाप दादाओं इब्राहीम अलैहिस्सलाम और इस्माईल अलैहिस्सलाम और इसहाक़ अलैहिस्सलाम के माबूद और वाहिद अल्लाह की इबादत करेंगे और हम उसी के मुसलमान यानी फ़रमाबरदार रहेंगे.
134. वह एक उम्मत थी, जो गुज़र चुकी है. उनके लिए वही होगा, जो कुछ उन्होंने कमाया. और तुम्हारे लिए वह होगा, जो कुछ तुम कमाओगे. और तुमसे उनके आमाल के बारे में पूछगछ नहीं होगी.
135. और अहले किताब कहते हैं कि यहूदी या नसरानी यानी ईसाई हो जाओ, तो हिदायत पा लोगे. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बिल्कुल नहीं, हम तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम के दीन की पैरवी करते हैं, जो मुशरिकों में से नहीं थे.
136. ऐ मुसलमानो ! तुम कह दो कि हम अल्लाह पर ईमान लाए हैं और उस किताब यानी क़ुरआन पर, जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल किया गया और जो सहीफ़े इब्राहीम अलैहिस्सलाम और इस्माईल अलैहिस्सलाम और इसहाक़ अलैहिस्सलाम और याक़ूब अलैहिस्सलाम और उनकी औलादों पर नाज़िल हुए और जो किताबें तौरात और इंजील मूसा अलैहिस्सलाम और ईसा अलैहिस्सलाम को अता की गईं और इसी तरह जो सहीफ़ें दूसरे नबियों को उनके परवरदिगार की तरफ़ से अता किए गए, उन सब पर ईमान लाए हैं. और हम उनमें कोई फ़र्क़ नहीं करते और हम अल्लाह ही के मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हैं.
137. फिर अगर वे लोग भी इसी तरह ईमान लाए, जैसे तुम इस पर ईमान लाए हो, तो वे वाक़ई हिदायत पा लेंगे. और अगर उन्होंने मुंह फेर लिया, तो बेशक वे ज़िद पर हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम्हें उनके शर से बचाने के लिए अल्लाह ही काफ़ी है. और वह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
138. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम मुसलमानों से कह दो कि हम अल्लाह के रंग में रंगे हैं और किसका रंग अल्लाह के रंग से बेहतर हो सकता है. और हम उसी के इबादत गुज़ार हैं.
139. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या तुम हमसे अल्लाह के बारे में झगड़ते हो. हालांकि वह हमारा भी परवरदिगार है और तुम्हारा भी परवरदिगार है. और हमारे लिए हमारे आमाल और तुम्हारे लिए तुम्हारे आमाल हैं. और हम ख़ालिस उसी के हो चुके हैं.
140. ऐ अहले किताब ! क्या तुम यह कहते हो कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम और इस्माईल अलैहिस्सलाम और इसहाक़ अलैहिस्सलाम और याक़ूब अलैहिस्सलाम और उनकी औलादें यहूदी या नसरानी यानी ईसाई थीं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या तुम ज़्यादा जानते हो या अल्लाह. और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जो उस गवाही को छुपाये, जो उसके पास अल्लाह की तरफ़ से आसमानी किताबों में मौजूद हो कि वे यहूदी या नसरानी यानी ईसाई नहीं थे. और अल्लाह उन आमाल से ग़ाफ़िल नहीं, जो तुम किया करते हो.
141. वह एक उम्मत थी, जो गुज़र गई. जो उसने कमाया, वह उनके लिए था और जो तुम कमाओगे, वह तुम्हारे लिए होगा. और तुमसे उनके आमाल के बारे में कोई पूछगछ नहीं होगी.
142. अब कुछ अहमक़ कहेंगे कि मुसलमानों को उनके क़िबले बैतुल मुक़द्दस से किसने फेर दिया, जिस तरफ़ वे सजदा किया करते थे. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मशरिक़ और मग़रिब सब अल्लाह ही के मक़ाम हैं. वह जिसे चाहता है, सीधे रास्ते की हिदायत दे देता है.
143. ऐ मुसलमानो ! और इसी तरह हमने तुम्हें बेहतरीन उम्मत बनाया, ताकि तुम लोगों पर गवाह बनो. हमारे रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम पर गवाह हों. और तुम पहले जिस क़िबले पर थे, हमने सिर्फ़ इसलिए मुक़र्रर किया था कि हम ज़ाहिर कर दें कि कौन हमारे रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैरवी करता है और कौन उनसे फिर जाता है. और बेशक यह क़िबले का बदलना बहुत बड़ी बात थी, लेकिन उनके लिए नहीं, जिन्हें अल्लाह ने हिदायत दी और अल्लाह के शायाने शान नहीं कि वह तुम्हारा ईमान यूं ही ज़ाया कर दे. बेशक अल्लाह बड़ा शफ़क़त वाला बड़ा मेहरबान है.
144. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम बार-बार तुम्हारा आसमान की तरफ़ रुख़ करना देख रहे हैं, तो हम ज़रूर तुम्हें क़िबले की तरफ़ फेर देंगे, जिस पर तुम राज़ी हो. फिर तुम अपना रुख़ मस्जिदे हराम की तरफ़ फेर लो. ऐ मुसलमानो ! तुम जहां कहीं भी हो, अपना रुख़ उसी तरफ़ फेर लिया करो. और बेशक जिन लोगों को किताब यानी तौरात दी गई है, वे ख़ूब जानते हैं कि यह हुक्म उनके परवरदिगार की तरफ़ से हक़ है. और अल्लाह उन आमाल से ग़ाफ़िल नहीं, जो तुम किया करते हो.
145. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम अहले किताब के सामने तमाम निशानियां भी पेश कर दोगे, तब भी वे तुम्हारे क़िबले की पैरवी नहीं करेंगे और न तुम उनके क़िबले की पैरवी करोगे. और वे आपस में भी एक दूसरे के क़िबले की पैरवी नहीं करते. ऐ मुसलमानो ! और अगर तुमने इल्म आ जाने के बाद उनकी ख़्वाहिशों की पैरवी की, तो बेशक तुम भी ज़ालिमों में से हो जाओगे.
146. और जिन लोगों को हमने किताब अता की है, वे इन रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और काबे की अज़मत को उसी तरह पहचानते हैं, जैसे अपने बेटों को पहचानते हैं. और बेशक उनमें से एक फ़रीक़ हक़ को छुपा रहा है. हालांकि वह हक़ीक़त जानता है.
147. ऐ मुसलमानो ! क़िबले की तबदीली तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बरहक़ है. फिर तुम शक करने वालों में से न हो जाना.
148. और हर एक के लिए तवज्जो की एक सिम्त मुक़र्रर है, वह उसी की तरफ़ रुख़ करता है. फिर तुम नेकियों की तरफ़ लपक कर आगे बढ़ जाया करो. तुम जहां कहीं भी होगे, अल्लाह तुम सबको जमा कर लेगा. बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
149. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम जहां भी सफ़र के लिए निकलो, तो नमाज़ के वक़्त अपना रुख़ मस्जिदे हराम की तरफ़ कर लिया करो. और बेशक यही तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बरहक़ है. और अल्लाह उन आमाल से ग़ाफ़िल नहीं, जो तुम किया करते हो.
150. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम जहां भी सफ़र के लिए निकलो, तो नमाज़ के वक़्त अपना रुख़ मस्जिदे हराम की तरफ़ कर लिया करो. और ऐ मुसलमानो ! तुम जहां कहीं भी हो, तो अपना रुख़ उसी की तरफ़ फेर लिया करो, ताकि लोगों को तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई हुज्जत बाक़ी न रहे, सिवाय उन लोगों के जो उनमें ज़ालिम हैं. और तुम उनसे मत डरो, सिर्फ़ हमसे ही डरते रहो, ताकि हम तुम पर अपनी नेअमतें पूरी करें और तुम कामिल हिदायत पाओ.
151. इसी तरह हमने तुम्हारे दरम्यान तुममें से ऐसे रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भेजा, जो तुम्हारे सामने हमारी आयतें पढ़ते हैं और तुम्हारे नफ़्स को पाक करते हैं और तुम्हें किताब यानी क़ुरआन और हिकमत की तालीम देते हैं और तुम्हें वह सब सिखाते हैं, जो तुम नहीं जानते थे.
152. फिर तुम हमारा ज़िक्र किया करो, तो हम भी तुम्हारा ज़िक्रे खै़र किया करेंगे. और हमारा शुक्र अदा करते रहा करो और नाशुक्री न किया करो.
153. ऐ ईमान वालो ! मुसीबत के वक़्त सब्र और नमाज़ के ज़रिये अल्लाह से मदद चाहो. बेशक अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है.
154. और जो लोग अल्लाह की राह में क़त्ल किए गए, उन्हें कभी मुर्दा न कहना, बल्कि वे लोग ज़िन्दा हैं. लेकिन तुम नहीं जानते यानी तुम उनकी हक़ीक़ी ज़िन्दगी के बारे में नहीं जानते.
155. और हम तुम्हें थोड़े ख़ौफ़ और भूख और माल व दौलत और जानों और फलों के नुक़सान की कमी से ज़रूर आजमाएंगे. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम इन सब्र करने वालों को खुशख़बरी दे दो.
156. और जब उन पर कोई मुसीबत आती है, तो वे कहते हैं कि बेशक हम अल्लाह ही के हैं और हमें उसकी तरफ़ ही लौटना है.
157. यही वे लोग हैं, जिन पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से इनायतें हैं और उनके परवरदिगार की रहमत है और यही लोग हिदायत याफ़्ता हैं.
158. बेशक कोहे सफ़ा और कोहे मरवा अल्लाह की निशानियों में से हैं. फिर जो ख़ाना ए काबा का हज या उमरा करे, तो उसके लिए कोई हर्ज नहीं कि वह दोनों के दरम्यान तवाफ़ करे. और जो अपनी ख़ुशी से कोई नेकी करे, तो बेशक अल्लाह बड़ा क़द्रदान बड़ा साहिबे इल्म है.
159. बेशक जो लोग हमारी नाज़िल की हुई वाज़ेह निशानियों और हिदायतों को छुपाते हैं, इसके बाद कि हमने उन्हें लोगों के लिए अपनी किताब में वाज़ेह कर दिया है, तो उन्हीं लोगों पर अल्लाह की लानत है. और लानत भेजने वाले भी उन पर लानत भेजते हैं.
160. लेकिन जो लोग तौबा करें और अपनी इस्लाह कर लें और हक़ को ज़ाहिर कर दें, तो हम भी उन्हें मुआफ़ कर देते हैं. और हम बड़े तौबा क़ुबूल करने वाले बड़े मेहरबान हैं.
161. बेशक जिन लोगों नें कुफ़्र किया और कुफ़्र की हालत में ही मर गए, तो उन पर अल्लाह और फ़रिश्तों और तमाम लोगों की लानत है.
162. वे हमेशा इसी लानत में गिरफ़्तार रहेंगे. उनसे न अज़ाब कम किया जाएगा और न उन्हें मोहलत ही दी जाएगी.
163. और तुम्हारा माबूद वाहिद अल्लाह है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम करने वाला है.
164. बेशक आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ में और रात दिन के आने जाने में और जहाज़ों और कश्तियों में जो समन्दर और दरिया में लोगों को नफ़ा पहुंचाने वाली चीज़ें लेकर चलती हैं और बारिश के पानी में जिसे अल्लाह आसमान से बरसाता है. फिर उसके ज़रिये मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा यानी बंजर ज़मीन को शादाब करता है. वह ज़मीन जिसमें उसने हर क़िस्म के जानवर फैला दिए हैं. और हवाओं के रुख़ बदलने में और बादलों में जो आसमानों और ज़मीन के दरम्यान अल्लाह के हुक्म के ताबे हैं. इसमें उस क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं, जो अक़्ल से काम लेती है.
165. और लोगों में कुछ ऐसे भी हैं, जो अल्लाह के सिवा दूसरों को उसका शरीक ठहराते हैं और उनसे ऐसी मुहब्बत करते हैं, जैसी अल्लाह से की जाती है. और जो लोग ईमान लाए हैं, वे सबसे ज़्यादा अल्लाह से मुहब्बत करते हैं. और ज़ुल्म करने वाले लोग उस वक़्त को देख लें, जब अज़ाब उनकी आंखों के सामने होगा, तो वे जान लेंगे कि सारी क़ूवत का मालिक अल्लाह ही है. और बेशक अल्लाह ज़ालिमों को सख़्त अज़ाब देने वाला है.
166. जब बातिल सरपरस्त अपनी पैरवी करने वाले लोगों से बेज़ार हो जाएंगे. और वे अल्लाह का अज़ाब देख लेंगे और उनके आपसी ताल्लुक़ात टूट जाएंगे.
167. और पैरवी करने वाले लोग कहेंगे कि काश ! हमें दुनिया में दोबारा जाने का मौक़ा मिल जाता, तो हम भी उनसे इसी तरह बेज़ार हो जाते, जैसे उन्होंने आज हमसे बेज़ारी ज़ाहिर की है. इसी तरह अल्लाह उन्हें उनके आमाल हसरत बनाकर दिखाएगा और वे किसी भी तरह दोज़ख़ से निकल नहीं पाएंगे.
168. ऐ इंसानो ! ज़मीन की चीज़ों में से, जो हलाल और पाकीज़ा चीज़ें हैं, उन्हें खाओ व पियो और शैतान के नक़्शे क़दम पर चलकर उसकी पैरवी मत करो. बेशक वह तुम्हारा सरीह दुश्मन है.
169. शैतान तुम्हें बुराई और बेहयाई का हुक्म देता है और वह यह भी चाहता है कि तुम अल्लाह के बारे में वह सब कहो, जो तुम ख़ुद नहीं जानते.
170. और जब उनसे कहा जाता है कि जो अल्लाह ने नाज़िल किया है, उसकी पैरवी करो, तो वे लोग कहते हैं कि नहीं, बल्कि हम तो उसी रविश पर चलेंगे, जिस पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया है, अगरचे उनके बाप दादा कुछ भी न समझते हों और न हिदायत याफ़्ता हों.
171. और उन कुफ़्र करने वाले लोगों को हिदायत की तरफ़ बुलाने की मिसाल ऐसी है, गोया कोई ऐसे जानवर को पुकार कर अपना हलक़ फाड़े, जो सिवाय आवाज़ और पुकार के कुछ नहीं सुनता. ये लोग बहरे और गूंगे और अंधे हैं, जो कोई बात समझ नहीं सकते.
172. ऐ ईमान वालो ! उन पाकीज़ा चीज़ों में से खाओ व पियो, जो हमने तुम्हें अता की हैं और अल्लाह का शुक्र अदा करते रहो, अगर तुम सिर्फ़ उसी के इबादत गुज़ार हो.
173. बेशक अल्लाह ने तुम पर मुर्दा जानवर और ख़ून और ख़िन्ज़ीर का गोश्त और वह जिस पर ज़िबह के वक़्त अल्लाह के सिवा दूसरे का नाम लिया गया हो, हराम किया है. फिर जो शख़्स मजबूर हो और न बाग़ी हो और न हद से बढ़ जाने वाला हो, तो उस पर गुनाह नहीं है. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
174. बेशक जो लोग किताब यानी तौरात की आयतों को छुपाते हैं, जो अल्लाह ने नाज़िल की है और इसके बदले में थोड़ी सी क़ीमत वसूल करते हैं. वे लोग सिवाय अपने पेटों में आग भरने के कुछ नहीं खाते. और अल्लाह क़यामत के दिन उनसे न कलाम करेगा और न उन्हें पाक करेगा. और उन लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब है.
175. यही वे लोग हैं, जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही ख़रीद ली और मग़फ़िरत के बदले अज़ाब मोल ले लिया है. फिर वे लोग दोज़ख़ की आग पर कैसे सब्र करेंगे.
176. यह इसलिए है कि अल्लाह ने किताब हक़ के साथ नाज़िल की है. और बेशक जिन लोगों ने किताब में इख़्तिलाफ़ किया, वे ज़िद में बहुत दूर निकल चुके हैं.
177. नेकी सिर्फ़ यही नहीं है कि तुम अपना रुख़ मशरिक़ और मग़रिब की तरफ़ फेर लो, बल्कि असल नेकी तो यह है कि कोई शख़्स अल्लाह और क़यामत के दिन और फ़रिश्तों और अल्लाह की किताब और नबियों पर ईमान लाए और अल्लाह की मुहब्बत में अपना माल रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और मुसाफ़िरों और साइलों यानी मांगने वालों और ग़ुलामों को आज़ाद कराने में ख़र्च करे और पाबंदी से नमाज़ पढ़े और ज़कात देता रहे और जब कोई वादा करे, तो उसे पूरा करे और तंगी और मुसीबत और जंग की सख़्ती के वक़्त सब्र करने वाला हो. यही लोग सच्चे हैं और यही लोग परहेज़गार हैं.
178. ऐ ईमान वालो ! नाहक़ क़त्ल के मामले में तुम पर क़सास यानी बराबर का बदला फ़र्ज़ किया गया है. आज़ाद का बदला आज़ाद से और ग़ुलाम का बदला ग़ुलाम से और औरत का बदला औरत से ही लिया जाएगा. यानी क़ातिल ही को सज़ा दी जाएगी न कि किसी दूसरे बेगुनाह से बदला लिया जाएगा. फिर अगर उसे मक़तूल का भाई या वारिस उसकी तरफ़ से मुआफ़ कर दे, तो दस्तूर के मुताबिक़ पैरवी की जाए और मुआवज़े की रक़म अच्छे तरीक़े से मक़तूल के वारिसों को अदा कर दी जाए. यह तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम्हारे हक़ में आसानी और रहमत है. फिर उसके बाद जो ज़्यादती करेगा, तो उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
179. और तुम्हारे लिए क़सास ही ज़िन्दगी की ज़मानत है. ऐ अक़्लमंद लोगो ! ताकि तुम परहेज़गार बनो.
180. तुम पर फ़र्ज़ किया गया है कि जब तुम में से किसी की मौत क़रीब आ जाए, अगर उसने कुछ माल छोड़ा हो, तो अपने वालिदैन और क़रीबी रिश्तेदारों के हक़ में अच्छी तरह से वसीयत करे. यह परहेज़गारों पर लाज़िम है.
181. फिर जो इस वसीयत को सुनने के बाद बदल दे, तो इसका गुनाह बदलने वालों पर होगा. बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
182. फिर अगर किसी को ख़ौफ़ हो कि वसीयत करने वाले से बेजा तरफ़दारी या किसी के हक़ में नाइंसाफ़ी हो गई है. फिर वह उनके दरम्यान सुलह करा दे, तो उस पर कोई गुनाह नहीं है. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
183. ऐ ईमान वालो ! तुम पर उसी तरह रोज़े फ़र्ज़ किए गए हैं, जैसे तुमसे पहले के लोगों पर फ़र्ज़ किए गए थे, ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ.
184. गिनती के चन्द दिन रोज़े रखने हैं. फिर अगर तुम में से कोई बीमार हो या सफ़र में हो, तो दूसरे दिनों में रोज़े रखकर गिनती पूरी कर ले. और जिनमें रोज़ा रखने की क़ूवत न हो, तो वे एक मोहताज को खाना खिलाकर फ़िदया अदा करें. फिर कोई अपनी ख़ुशी से ज़्यादा नेकी करे, तो यह उसके लिए बेहतर है. और अगर तुम रोज़ा रखो, तो यह तुम्हारे हक़ में ज़्यादा बेहतर है. अगर तुम जानते हो.
185. रमज़ान वह मुक़द्दस महीना है, जिसमें क़ुरआन नाज़िल किया गया है, जो लोगों के लिए सरापा हिदायत है और जिसमें रहनुमाई करने वाली और हक़ व बातिल की तमीज़ सिखाने वाली वाज़ेह निशानियां हैं. ऐ मुसलमानो ! फिर तुममें से जो इस महीने में मौजूद हो, तो वह रोज़े ज़रूर रखे और जो बीमार हो या सफ़र में हो, तो वह दूसरे दिनों में रोज़े रखकर गिनती पूरी करे. अल्लाह तुम्हारे हक़ में आसानी चाहता है और तुम्हारे साथ दुश्वारी नहीं चाहता और शुमार का हुक्म इसलिए दिया गया है, ताकि तुम रोज़ों की गिनती पूरी कर लो. और उसके लिए अल्लाह की बड़ाई करो, जो हिदायत उसने तुम्हें दी है और तुम उसके शुक्रगुज़ार बनो.
186. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब मेरे बन्दे तुमसे हमारे बारे में सवाल करें, तो तुम कह दो कि हम उनके क़रीब हैं. और जब हमसे कोई दुआ मांगता है, तो हम हर दुआ मांगने वाले की मुनासिब दुआ क़ुबूल करते हैं. फिर उन्हें चाहिए कि वे हम पर ईमान लाएं, ताकि वे सीधा रास्ता पा सकें.
187. ऐ मुसलमानो ! तुम्हारे लिए रोज़ों की रातों में अपनी बीवियों के पास जाना हलाल कर दिया गया है. वे तुम्हारा लिबास हैं और तुम उनका लिबास हो. अल्लाह जानता है कि तुम अपने हक़ में ख़यानत करते थे. इसलिए उसने तुम्हें मुआफ़ कर दिया और तुम्हारी ख़ताओं को दरगुज़र किया. फिर तुम उनसे मिलो और जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है, उसे मांगों और खाओ और पियो, यहां तक कि सुबह की सफ़ेद धारी रात की स्याह धारी से अलग होकर आसमान पर नज़र आने लगे. फिर रात तक रोज़ा पूरा करो. और जब तुम मस्जिदों में एतिकाफ़ में बैठे हो, तो उस दौरान औरतों से न मिलो. ये अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदें हैं. फिर उनके क़रीब भी मत जाओ. इसी तरह अल्लाह लोगों के लिए अपनी आयतें वाज़ेह तौर पर बयान करता है, ताकि वे परहेज़गार बन जाएं.
188. और आपस में एक दूसरे का माल नाहक़ मत खाओ और न माल को रिश्वत के तौर पर हाकिमों तक पहुंचाया करो कि लोगों के माल में से कुछ हिस्सा तुम भी नाजायज़ तरीक़े से खा सको. यह गुनाह है और तुम भी जानते हो.
189. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वे लोग तुमसे चांद के घटने बढ़ने के बारे में सवाल करते हैं, तो उनसे कह दो कि इससे लोगों के काम और हज का वक़्त मालूम होता है. और यह कोई अच्छी बात नहीं है कि तुम एहराम की हालत में अपने घरों में पीछे की तरफ़ से आओ, बल्कि अच्छाई तो परहेज़गारी इख़्तियार करना है. और तुम घरों में उनके दरवाज़ों से ही आया करो. और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम कामयाबी पाओ.
190. और जो लोग तुमसे नाहक़ जंग करें, तो तुम भी अल्लाह की राह में उनसे जंग करो और ज़्यादती न करो. बेशक अल्लाह ज़्यादती करने वालों को हरगिज़ पसंद नहीं करता.
191. और इस जंग के दौरान तुम उन मुशरिकों को जहां भी पाओ, क़त्ल कर दो और उन्हें वहां से बाहर निकाल दो, जहां से उन्होंने तुम्हें निकाला था. और फ़ितनेबाज़ी तो क़त्ल से भी ज़्यादा संगीन है. और उनसे मस्जिदे हराम यानी ख़ाना ए काबा के क़रीब जंग न करो, जब तक कि वे ख़ुद तुमसे वहां जंग न करें. फिर अगर वे तुम्हें क़त्ल करें, तो तुम भी उन्हें क़त्ल कर दो. इन काफ़िरों की यही सज़ा है.
192. फिर अगर वे लोग बाज़ आ जाएं, तो बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
193. और तुम उन लोगों ने जंग करते रहो, यहां तक कि कोई फ़ितनेबाज़ी बाक़ी न रहे और सिर्फ़ अल्लाह ही का दीन रह जाए. फिर अगर वे लोग बाज़ आ जाएं, तो उन पर ज़्यादती न करो, क्योंकि ज़ालिमों के सिवा किसी पर ज़्यादती जायज़ नहीं है.
194. हुरमत वाला महीना हुरमत वाले महीने का बदला है. और हुरमत वाली चीज़ें एक दूसरे का बदल हैं. फिर अगर तुम पर कोई ज़्यादती करे, तो तुम भी उस पर उतनी ही ज़्यादती करो, जितनी उसने तुम पर की है. और अल्लाह से डरते रहो और जान लो कि अल्लाह परहेज़गारों के साथ है.
195. और तुम अल्लाह की राह में ख़र्च करो और अपने ही हाथों ख़ुद को हलाकत में न डालो और अहसान यानी नेकी करो. बेशक अल्लाह मोहसिनों से मुहब्बत करता है.
196. और अल्लाह की ख़ुशनूदी के लिए हज और उमरा मुकम्मल करो. फिर अगर तुम किसी वजह से रास्ते में रोक दिए जाओ, तो फिर क़ुर्बानी का जो भी जानवर मयस्सर हो, तो क़ुर्बानी कर दो. और अपने सरों को उस वक़्त तक न मुंडवाओ, जब तक क़ुर्बानी का जानवर अपनी जगह पर न पहुंच जाए. फिर जब तुम में से कोई बीमार या सर में कोई तकलीफ़ होने की वजह से पहले ही सर मुंडवा ले, तो वह उसके बदले में रोजे़ रखे या सदक़ा दे या क़ुर्बानी करे. फिर जब तुम अमन की हालत में आ जाओ और हज से पहले मक्का पहुंच जाओ, तो हज से पहले उमरा करने का फ़ायदा उठाना चाहो, तो क़ुर्बानी का जो भी जानवर मयस्सर हो, तो क़ुर्बानी कर दो. जिसे यह भी मयस्सर न हो, तो वह हज के दौरान तीन रोज़े रखे और वापस आने के बाद सात रोज़े रखे. इस तरह दस रोज़े पूरे हो जाएंगे. यह हुक्म उन लोगों के लिए है, जो मस्जिदे हराम यानी मक्का के बाशिन्दे नहीं हैं. और अल्लाह से डरते रहो और जान लो कि अल्लाह ज़ालिमों को बड़ा सख़्त अज़ाब देने वाला है.
197. हज के चन्द महीने हैं यानी शव्वाल, ज़ुलक़ादा और ज़िलहिज्जा. फिर जो इन महीनों में नीयत करके ख़ुद पर हज लाज़िम कर ले, तो वह हज के दिनों में न बेहयाई करे, न कोई और गुनाह करे और न किसी से झगड़ा करे. और तुम जो भी नेकी करोगे, तो अल्लाह उसे ख़ूब जानता है. और तुम आख़िरत के सफ़र का सामान जुटा लो. और बेशक सबसे बेहतर ज़ाद राह परहेज़गारी है. और ऐ अक़्लमंदो ! हमसे डरते रहो.
198. और तुम पर इस बात में कोई गुनाह नहीं है कि अगर तुम हज के दिनों में तिजारत के ज़रिये अपने परवरदिगार का फ़ज़ल भी तलाश करो. फिर जब तुम अराफ़ात से वापस आओ, मशअरुल हराम के पास अल्लाह का ज़िक्र किया करो और उसका ज़िक्र इस तरह करो जैसे तुम्हें हिदायत दी गई है. और बेशक इससे पहले तुम गुमराह थे.
199. फिर तुम वहीं से जाकर वापस आया करो, जहां से और लोग वापस आते हैं. और अल्लाह से मग़फ़िरत चाहो और बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
200. फिर जब तुम हज के अरकान मुकम्मल कर चुको, तो मिना में अल्लाह का ख़ूब ज़िक्र किया करो जैसे अपने बाप दादाओं का ज़िक्र करते हो या उससे भी ज़्यादा ज़िक्र किया करो. फिर लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं, जो कहते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें दुनिया में ही अता कर दे और ऐसे शख़्स के लिए आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं है.
201. और उनमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं कि जो दुआ मांगते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें दुनिया में भी अच्छाई अता कर और आख़िरत में भी अच्छाई दे और दोज़ख़ के अज़ाब से महफ़ूज़ रख.
202. यही वे लोग हैं, जिनके लिए उनकी नेक कमाई में से हिस्सा है. और अल्लाह जल्द हिसाब करने वाला है.
203. और गिनती के उन चन्द दिनों में अल्लाह का ख़ूब ज़िक्र किया करो. फिर जो मिना से वापसी में दो ही दिन में चल पड़ा, तो उस पर भी कोई गुनाह नहीं है. और जो तीसरे दिन तक ठहरा, तो उस पर भी कोई गुनाह नहीं है. लेकिन यह हुक्म उसके लिए है, जो परहेज़गार हो. और अल्लाह से डरते रहो और जान लो कि बेशक तुम सबको उसके हुज़ूर में जमा किया जाएगा.
204. और उनमें कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनकी गुफ़्तगू दुनियावी ज़िन्दगी में तुम्हें बहुत अच्छी लगती है और वे अल्लाह को अपने दिल की बात पर गवाह भी बनाते हैं. और वे सबसे ज़्यादा झगड़ालू हैं.
205. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब वे तुमसे फिर जाते हैं, तो ज़मीन में हर मुमकिन भागदौड़ करते हैं, ताकि उसमें फ़साद फैलाएं और खेत और नस्लें तबाह व बर्बाद कर दें और अल्लाह फ़साद को पसंद नहीं करता.
206. और जब उससे कहा जाता है कि अल्लाह से डरो, तो उसका ग़ुरूर उसे मज़ीद गुनाह करने पर आमादा करता है. फिर उसके लिए जहन्नुम काफ़ी है और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है.
207. और उनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए अपनी जान तक फ़रोख़्त कर देते हैं और अल्लाह अपने बन्दों पर बड़ा शफ़क़त करने वाला है.
208. ऐ ईमान वालो ! तुम सब इस्लाम में पूरी तरह दाख़िल हो जाओ और शैतान के नक़्शे क़दम पर चलकर उसकी पैरवी मत करो. बेशक वह तुम्हारा सरीह दुश्मन है.
209. फिर अगर तुम उसके बाद भी बहक जाओ कि तुम्हारे पास वाज़ेह निशानियां आ चुकी हैं, तो जान लो कि अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
210. क्या वे लोग इसी के मुंतज़िर हैं कि बादल के सायबानों में अल्लाह का अज़ाब आ जाए और फ़रिश्ते भी नीचे उतर आएं और सारा क़िस्सा ख़त्म हो जाए. और सारे काम अल्लाह ही की तरफ़ रुजू करते हैं.
211. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम बनी इस्राईल से पूछो कि हमने उन्हें कितनी वाज़ेह निशानियां अता की थीं. और जो अल्लाह की नेअमत को अपने पास आने के बाद उसे बदल दे, तो बेशक अल्लाह बड़ा सख़्त अज़ाब देने वाला है.
212. कुफ़्र करने वाले लोगों के लिए दुनियावी ज़िन्दगी ख़ूब आरास्ता कर दी गई है और वे ईमान वालों का मज़ाक़ उड़ाते हैं. और परहेज़गार क़यामत के दिन उनसे बालातर होंगे. और अल्लाह जिसे चाहता है, उसे बेहिसाब रिज़्क़ अता करता है.
213. पहले सब लोग एक ही उम्मत थे, यानी एक ही दीन रखते थे. फिर जब वे आपस में झगड़ने लगे, तो अल्लाह ने ख़ुशख़बरी देने वाले और अज़ाब से ख़बरदार करने वाले नबियों को भेजा और उनके साथ बरहक़ किताबें भी नाज़िल कीं, ताकि अल्लाह उनके दरम्यान फ़ैसला कर दे, जिन बातों को लेकर वे आपस में इख़्तिलाफ़ करते थे. और इख़्तिलाफ़ भी उन्हीं लोगों ने किया, जिन्हें किताबें अता की गई थीं. हालांकि उनके पास वाज़ेह निशानियां आ चुकी थीं. और उन्होंने यह इख़्तिलाफ़ भी महज़ ज़िद और हसद की वजह से किया था. फिर अल्लाह ने ईमान वालों को हिदायत दे दी और उन्होंने हक़ को जान लिया, जिसमें वे इख़्तिलाफ़ किया करते थे. और अल्लाह जिसे चाहता है, उसे सीधे रास्ते की हिदायत देता है.
214. क्या तुम यह गुमान करते हो कि तुम यूं ही जन्नत में दाख़िल हो जाओगे. हालांकि तुम पर अभी तक उन लोगों जैसे हालात नहीं आए, जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं. उन्हें तो तरह-तरह की सख़्तियां और तकलीफ़ें पहुंचीं और उन्हें इस तरह झिंझोड़ा गया कि रसूल और उनके ईमान वाले साथी भी कहने लगे कि अल्लाह की मदद कब आएगी ? जान लो कि बेशक अल्लाह की मदद बहुत क़रीब है.
215. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुमसे लोग सवाल करते हैं कि हम अल्लाह की राह में क्या ख़र्च करें, तो तुम उनसे कह दो कि तुम अपनी नेक कमाई में से जो कुछ ख़र्च करोगे, वह तुम्हारे वालिदैन और रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और मुसाफ़िरों के लिए होगा. और जो भी नेकी तुम करते हो, बेशक अल्लाह उसे ख़ूब जानने वाला है.
216. ऐ मुसलमानो ! तुम पर जंग फ़र्ज़ की गई है, अगरचे वह तुम्हें कितनी ही नागवार लगे और मुमकिन है कि तुम किसी चीज़ को नापसंद करो और वह तुम्हारे हक़ में बेहतर हो. और यह भी मुमकिन है कि तुम किसी चीज़ को पसंद करो और वह तुम्हारे हक़ में बुरी हो. और अल्लाह सब जानता है और तुम नहीं जानते.
217. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुमसे लोग हुरमत वाले महीने में जंग के हुक्म के बारे में सवाल करते हैं, तो तुम कह दो कि इस महीने में जंग करना बहुत बड़ा गुनाह है और अल्लाह के रास्ते से रोकना और उससे कुफ़्र करना और मस्जिदे हराम यानी ख़ाना ए काबा से रोकना और वहां के बाशिन्दों को मस्जिद से निकालना अल्लाह के नज़दीक इससे भी बड़ा गुनाह है. और यह फ़ितनेबाज़ी तो क़त्ल करने से भी बड़ा गुनाह है और वे काफ़िर तुमसे हमेशा जंग करते रहेंगे, यहां तक कि तुम्हें तुम्हारे दीन से फेर दें, अगर वे इतनी क़ूवत पा लें. और तुम में से जो अपने दीन से फिर जाए और फिर वह काफ़िर ही मर जाए, तो ऐसे लोगों के दुनिया और आख़िरत में सब आमाल बर्बाद हो जाएंगे. और वे सब असहाबे दोज़ख़ हैं. वे उसमें हमेशा रहेंगे.
218. बेशक जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने अल्लाह की राह में हिजरत की और जिहाद किया. वही लोग अल्लाह की रहमत के उम्मीदवार हैं. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
219. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुमसे लोग शराब और जुए के बारे में सवाल करते हैं, तो तुम कह दो कि इन दोनों में बड़ा गुनाह है और लोगों के लिए कुछ दुनियावी मुनाफ़ा भी है. और इन दोनों का गुनाह इनके नफ़े से ज़्यादा है. और तुमसे लोग सवाल करते हैं कि अल्लाह की राह में क्या ख़र्च करें, तो तुम कह दो कि जो तुम्हारी ज़रूरत से ज़्यादा हो, वह ख़र्च करो. इस तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को वाज़ेह तौर पर बयान करता है, ताकि तुम ग़ौर व फ़िक्र करो.
220. तुम दुनिया और आख़िरत दोनों के बारे में ग़ौर करो. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुमसे लोग यतीमों के बारे में सवाल करते हैं, तो तुम कह दो कि उनकी इस्लाह बेहतर है और अगर तुम उन्हें अपने साथ मिला लो कि वे भी तुम्हारे भाई ही हैं. और अल्लाह ख़ूब जानता है कि कौन मुफ़सिद है और कौन इस्लाह करने वाला है. और अगर अल्लाह चाहता, तो तुम्हें मुसीबत में मुब्तिला कर देता. बेशक अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
221. और तुम मुशरिक औरतों से उस वक़्त तक निकाह मत करो, जब तक कि वे ईमान न लाएं. और बेशक एक मोमिन कनीज़ मुशरिक आज़ाद औरत से बेहतर है, अगरचे वह तुम्हें कितनी ही अच्छी लगे. और मोमिन औरतों का मुशरिक मर्दों से निकाह न करो, जब तक कि वे ईमान न ले आएं. और बेशक मोमिन ग़ुलाम मुशरिक आज़ाद से बेहतर है, अगरचे वह तुम्हें कितना ही अच्छा लगे. मुशरिक तुम्हें दोज़ख़ की तरफ़ बुलाते हैं और अल्लाह अपने हुक्म से जन्नत और मग़फ़िरत की तरफ़ बुलाता है. और वह अपनी आयतें लोगों के लिए वाज़ेह तौर पर बयान करता है, ताकि वे ग़ौर व फ़िक्र करें.
222. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुमसे लोग हैज़ के बारे में सवाल करते हैं, तो तुम कह दो कि यह नापाकी है, इसलिए हैज़ के दिनों में औरतों से अलग रहा करो. और जब तक वे पाक न हो जाएं उनके क़रीब मत जाओ. फिर जब वे पाक हो जाएं, तो जिस तरह अल्लाह ने तुम्हें हुक्म दिया है, उनके पास जाओ. बेशक अल्लाह तौबा करने वालों से मुहब्बत करता है और वह पाक साफ़ रहने वालों से मुहब्बत करता है.
223. तुम्हारी औरतें तुम्हारी खेतियां हैं. फिर तुम अपनी खेतियों में जैसे चाहो जाओ. और कुछ आमाल अल्लाह की बारगाह में भेज दो. और अल्लाह से डरते रहो. और तुम जान लो कि तुम अल्लाह के हुज़ूर में पेश होने वाले हो. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम मोमिनों को ख़ुशख़बरी दे दो.
224. और तुम अपनी क़समों की वजह से अल्लाह के नाम को लोगों के साथ अच्छा सुलूक करने और तक़वा इख़्तियार करने और लोगों के दरम्यान सुलह करवाने में आड़ मत बनाओ. और अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
225. अल्लाह तुम्हारी बेहूदा क़समों पर तुम्हें गिरफ़्तार नहीं करेगा, लेकिन उन क़समों के लिए ज़रूर गिरफ़्तार करेगा, जो तुमने जानबूझ कर दिल से खाई हों. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा हलीम है.
226. जो लोग अपनी बीवियों के क़रीब न जाने की क़सम खायें, उनके लिए चार महीने की मोहलत है. फिर अगर वे इस मुद्दत में रुजू कर लें, तो बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
227. और अगर उन्होंने तलाक़ का इरादा कर लिया है, तो बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
228. और तलाक़ याफ़्ता औरतें तीन हैज़ तक ख़ुद को निकाह करने से रोकें. और उनके लिए जायज़ नहीं कि वे उसे छुपायें, जो अल्लाह ने उनके रहमों में पैदा किया है. अगर वे अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखती हैं. और इस मुद्दत में उनके शौहर उन्हें फिर से अपनी ज़ौजियत में लेने के ज़्यादा हक़दार हैं. और दस्तूर के मुताबिक़ औरतें के भी मर्दों पर उसी तरह हक़ूक़ हैं, जैसे मर्दों के औरतों पर हैं. और मर्दों को उन पर एक दर्जा हासिल है. और अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
229. तलाक़ सिर्फ़ दो बार दी जाएगी. उसके बाद बीवी को अच्छी तरह ज़ौजियत में रोक लिया जाए या फिर अच्छी तरह उसे रुख़सत कर दिया जाए. और तुम्हारे लिए यह जायज़ नहीं कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो, उनमें से कुछ भी वापस लो, सिवाय उसके कि दोनों को ख़ौफ़ हो कि अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदों को क़ायम नहीं रख सकेंगे. फिर तुम्हें ख़ौफ़ हो कि दोनों अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदों को क़ायम नहीं रख सकेंगे, तो उन पर कोई गुनाह नहीं कि बीवी कुछ बदला देकर ख़ुद आज़ादी पा ले. ये अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदें हैं. फिर तुम उनसे आगे मत बढ़ो. जो लोग अल्लाह की हदों से तजावुज़ करते हैं, तो वही ज़ालिम हैं.
230. फिर अगर उसने तीसरी बार भी बीवी को तलाक़ दे दी, तो उसके बाद वह उसके लिए हलाल नहीं होगी, जब तक कि वह दूसरे मर्द से निकाह न कर ले. फिर अगर दूसरा शौहर भी तलाक़ दे दे, तो उन दोनों पर कोई गुनाह नहीं है कि वे अपने शौहर बीवी के रिश्ते में लौट आएं. बशर्ते दोनों को यह गुमान हो कि वे अल्लाह की हदों को क़ायम रख सकेंगे. ये अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदें हैं, जिन्हें वह इल्म वाली क़ौम के लिए वाज़ेह तौर पर बयान करता है.
231. और जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो और उनकी इद्दत पूरी होने वाली हो, तो उन्हें अच्छी तरह अपनी ज़ौजियत में रोक लो या उन्हें हुस्ने सुलूक के साथ रुख़सत कर दो और उन्हें महज़ तकलीफ़ देने के लिए न रोके रखो कि उन पर ज़्यादती करते रहो. और जो कोई ऐसा करेगा, तो फिर वह अपनी जान पर ही ज़ुल्म करेगा. और अल्लाह के अहकाम को मज़ाक़ मत समझो. और अल्लाह की उस नेअमत का ज़िक्र करो, जो उसने तुम्हें अता की है और तुम पर जो किताब और हिकमत की बातें नाज़िल की हैं, जिनके ज़रिये वह तुम्हें नसीहत करता है. और अल्लाह से डरते रहो. और जान लो कि बेशक अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
232. और जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दे दो और वे अपनी इद्दत पूरी कर लें, तो दस्तूर के मुताबिक़ जब वे आपस में रज़ामंद हो हैं, तो उन्हें अपने पहले के या नये शौहरों के साथ निकाह करने से मत रोको. उस शख़्स को यह नसीहत की जाती है, जो तुम में से अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता है. यह तुम्हारे हक़ में बड़ी शाइस्ता और पाकीज़ा बात है. और अल्लाह सब जानता है और तुम नहीं जानते.
233. और मायें अपने बच्चों को पूरे दो बरस तक दूध पिलाएं. यह हुक्म उसके लिए है, जो दूध पिलाने की मुद्दत पूरी करना चाहे. और दूध पिलाने वाली माओं का खाना और पहनना दस्तूर के मुताबिक़ बच्चे के बाप पर लाज़िम है. किसी को उसकी क़ूवत से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं दी जाए और न मां को उसके बच्चे की वजह से नुक़सान पहुंचाया जाए और न बाप को उसकी औलाद की वजह से तकलीफ़ दी जाए. और वारिसों पर भी यही हुक्म आयद होता है. फिर अगर मां और बाप दोनों आपस में रज़ामंदी और मशवरे से दो बरस से पहले ही दूध छुड़ाना चाहें, तो उन पर कोई गुनाह नहीं है. और फिर अगर तुम अपनी औलाद को दाई से दूध पिलवाना चाहो, तो कोई हर्ज नहीं, जबकि तुम दस्तूर के मुताबिक़ उजरत अदा करो. और अल्लाह से डरते रहो और जान लो कि बेशक जो आमाल तुम करते हो, अल्लाह उन्हें देख रहा है.
234. और तुम में से जो लोग मर जाएं और अपनी बीवियां छोड़ जाएं, तो वे औरतें चार महीने दस दिन की इद्दत तक इंतज़ार करें यानी दूसरा निकाह न करें. फिर जब इद्दत पूरी हो जाए, तो दस्तूर के मुताबिक़ जो कुछ अपने हक़ में करें, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है. और अल्लाह उन आमाल से बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
235. और तुम पर इस बात में कोई गुनाह नहीं कि इद्दत के दौरान उन्हें इशारे से निकाह का पैग़ाम दे दो या यह ख़्याल अपने दिलों में पोशीदा रखो. अल्लाह जानता है कि तुम अनक़रीब उनसे ज़िक्र करोगे, लेकिन उनसे छुपकर ऐसा वादा न करो, सिवाय इसके कि तुम दस्तूर के मुताबिक़ कोई शाइस्ता बात कह दो. और जब तक इद्दत की मियाद पूरी न हो जाए, उस वक़्त तक निकाह का पुख़्ता इरादा न करो. और याद रखो कि अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो कुछ तुम्हारे दिलों में पोशीदा है. और जान लो कि अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा हलीम है.
236. तुम पर इस बात में भी कोई गुनाह नहीं है कि अगर तुमने अपनी बीवियों को छूने या महर मुक़र्रर करने से पहले ही तलाक़ दे दी है, तो ऐसी हालत में उन्हें मुनासिब ख़र्च दे दो. मालदार अपनी हैसियत के मुताबिक़ और ग़रीब अपनी हैसियत के मुताबिक़ ख़र्च दे दें. यह मोहसिनों पर लाज़िम है.
237. और अगर तुमने बीवियों को छूने से पहले ही तलाक़ दे दी, लेकिन तुम उनका महर मुक़र्रर कर चुके हो, तो उन्हें आधा महर देना ज़रूरी है, सिवाय इसके कि वे अपना महर मुआफ़ कर दें या वह ज़्यादा दे, जिसके हाथ में निकाह का इख़्तियार है. ऐ मर्दों ! अगर तुम पूरा महर अदा कर दो, तो यह परहेज़गारी से बहुत ही क़रीबतर है. और आपस में एक दूसरे पर अहसान करना मत भूलो. बेशक जो आमाल तुम करते हो, अल्लाह उन्हें देख रहा है.
238. तुम अपनी सब नमाज़ों की हिफ़ाज़त किया करो और ख़ुसूसन दरम्यानी नमाज़ की. और अल्लाह की बारगाह में अदब से खड़े हुआ करो.
239. फिर अगर तुम ख़ौफ़ज़दा हो, तो पैदल या सवार जैसे भी हो, नमाज़ पढ़ लिया करो. और जब तुम अमन की हालत में आ जाओ, तो उसी तरीक़े से अल्लाह का ज़िक्र करो, जैसे अल्लाह ने तुम्हें अपने रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़रिये सिखाया है, जिसे पहले तुम नहीं जानते थे.
240. और तुम में से जो लोग मर जाएं और अपनी बीवियां छोड़ जाएं, उन पर लाज़िम है कि मरने से पहले अपनी बीवियों के लिए एक बरस तक का ख़र्च देने और उन्हें घर से न निकाले जाने की वसीयत कर जाएं. फिर अगर वे ख़ुद अपनी मर्ज़ी से चली जाएं, तो दस्तूर के मुताबिक़ जो कुछ वे अपने हक़ में करें, तो कोई गुनाह नहीं है. और अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
241. और तलाक़ याफ़्ता औरतों को भी मुनासिब तरीक़े से ख़र्च दिया जाए. यह परहेज़गारों पर लाज़िम है.
242. इसी तरह अल्लाह अपने अहकाम वाज़ेह तौर पर बयान करता है, ताकि तुम समझ सको.
243. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जो मौत के डर से अपने घरों से निकल गए. हालांकि वे हज़ारों की तादाद में थे. फिर अल्लाह ने उन्हें हुक्म दिया कि सब मर जाओ. और वे मर गए. फिर अल्लाह ने उन्हें ज़िन्दा कर दिया. बेशक अल्लाह लोगों पर बड़ा फ़ज़ल करने वाला है, लेकिन बहुत से लोग उसका शुक्र अदा नहीं करते.
244. ऐ मुसलमानो ! और तुम अल्लाह की राह में जंग करो और जान लो कि अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
245. कौन है, जो अल्लाह को क़र्ज़े हुस्ना दे. फिर वह उसके लिए उसे कई गुना बढ़ा दे. और अल्लाह ही तंगी देता है और वही कुशादगी देता है. और तुम सबको उसकी तरफ़ ही लौटना है.
246. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने बनी इस्राईल के उस गिरोह को नहीं देखा, जो मूसा अलैहिस्सलाम के बाद बना, जब उन्होंने अपने नबी से कहा कि हमारे लिए एक बादशाह मुक़र्रर कर दें, ताकि हम उसकी क़यादत में अल्लाह की राह में जंग करें. उनके नबी ने कहा कि कहीं ऐसा न हो कि तुम पर जंग फ़र्ज़ कर दी जाए, तो तुम जंग ही न करो. वे कहने लगे कि हमें क्या हुआ है कि हम अल्लाह की राह में जंग न करें. हालांकि हमें अपने घरों से निकाल दिया गया है. फिर जब उन पर जंग फ़र्ज़ कर दी गई, तो उनमें से कुछ लोगों के सिवा सबने मुंह फेर लिया. और अल्लाह ज़ालिमों से ख़ूब वाक़िफ़ है.
247. और उनके नबी ने उनसे कहा कि बेशक अल्लाह ने तालूत को तुम्हारा बादशाह मुक़र्रर किया है, तो वे कहने लगे कि उसे हम पर बादशाहत कैसे मिल सकती है. हालांकि बादशाहत पर हमारा ज़्यादा हक़ है, क्योंकि उसे माल व दौलत में भी वुसअत नहीं दी गई. उनके नबी ने कहा कि बेशक अल्लाह ने उसे तुम पर मुंतख़िब किया है और उसे इल्म और जिस्म में ज़्यादा वुसअत अता की है. और अल्लाह जिसे चाहता है, बादशाहत अता कर देता है. और अल्लाह बड़ा वुसअत वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
248. और उनके नबी ने उनसे यह भी कहा कि अल्लाह की तरफ़ से उसके बादशाह होने की यह निशानी है कि तुम्हारे पास वह संदूक़ आएगा, जिसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से क़ल्ब के सुकून का सामान होगा. और यह मूसा अलैहिस्सलाम और हारून अलैहिस्सलाम की औलाद का छोड़ा हुआ तबर्रुक होगा. और उस संदूक़ को फ़रिश्ते उठाए हुए होंगे. बेशक इसमें अल्लाह की क़ुदरत की बड़ी निशानी है, अगर तुम ईमान वाले हो.
249. फिर जब तालूत अपने लश्कर के साथ शहर से रवाना हुआ, तो उसने अपने साथियों से कहा कि बेशक अल्लाह तुम्हें एक नहर के ज़रिये आज़माएगा. फिर जिसने उसमें से पानी पी लिया, तो वह मेरे साथियों में से नहीं होगा. और जो उसे नहीं पिएगा, फिर वही मेरे साथियों में से होगा. लेकिन कोई एक चुल्लू भर पानी अपने हाथ से पी ले, तो कोई हर्ज नहीं है. फिर उनमें से कुछ लोगों के सिवा सबने उसमें से पानी पी लिया. फिर जब तालूत और उनके मोमिन साथी नहर के पार चले गए, तो वे कहने लगे कि आज हममें जालूत और उसके लश्करों से मुक़ाबले की ताक़त नहीं है. जो लोग यह यक़ीन रखते थे कि वे शहीद होकर अल्लाह से मुलाक़ात करने वाले हैं, वे कहने लगे कि कई मर्तबा अल्लाह के हुक्म से छोटी जमातें बड़ी जमातों पर ग़ालिब हो जाती है. और अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है.
250. और जब वे लोग जालूत और उसके लश्करों के मुक़ाबिल आए, तो दुआ मांगने लगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें कामिल सब्र अता कर और मैदाने जंग में साबित क़दम रख और हमें काफ़िरों की क़ौम के मुक़ाबले में हमारी मदद फ़रमा.
251. फिर उन लोगों ने अल्लाह के हुक्म से दुश्मनों को शिकस्त दी. और दाऊद अलैहिस्सलाम ने जालूत को क़त्ल कर दिया. और अल्लाह ने दाऊद अलैहिस्सलाम को हुकूमत और हिकमत अता की और जो इल्म व हुनर चाहा, उन्हें सिखाया. और अगर अल्लाह लोगों को एक दूसरे के ज़रिये न हटाता, तो तमाम ज़मीन ज़रूर तबाह व बर्बाद हो जाती. लेकिन अल्लाह तमाम आलमों के लोगों पर बड़ा फ़ज़ल करने वाला है.
252. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये अल्लाह की आयतें हैं, जो हम तुम्हें हक़ के साथ पढ़कर सुनाते हैं और बेशक तुम रसूलों में से हो.
253. ये सब रसूल जो हमने भेजे हैं, उनमें से कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत दी है. उनमें से किसी से ख़ुद अल्लाह ने कलाम किया है और किसी को दर्जात में बुलंदी दी है. और हमने मरियम अलैहिस्सलाम के बेटे ईसा अलैहिस्सलाम को वाज़ेह निशानियां अता कीं और हमने रूहुल क़ुदुस यानी जिब्रईल अलैहिस्सलाम के ज़रिये उनकी मदद की. और अगर अल्लाह चाहता, तो उन रसूलों के बाद आने वाले लोग अपने पास वाज़ेह निशानियां आने के बाद आपस में कभी नहीं लड़ते-झगड़ते, लेकिन उन्होंने इख़्तिलाफ़ किया. फिर उनमें से कुछ लोग ईमान लाए और कुछ ने कुफ़्र किया. अगर अल्लाह चाहता, तो वे कभी आपस में नहीं लड़ते, लेकिन अल्लाह वही करता है, जो वह चाहता है.
254. ऐ ईमान वालो ! जो कुछ हमने तुम्हें अता किया है, उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करो इससे पहले कि वह दिन आ जाए, जिसमें न कोई ख़रीद फ़रोख़्त होगी और न कोई दोस्ती होगी और न सिफ़ारिश ही कुछ काम आएगी. और कुफ़्र करने वाले लोग ही ज़ालिम हैं.
255. अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं. अल्लाह ही हमेशा ज़िन्दा रहने वाला और तमाम आलमों को क़ायम रखने वाला है. उसे न ऊंघ आती है और न नींद ही आती है. जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब उसी का है. कौन ऐसा है, जो बग़ैर उसकी इजाज़त के उसकी बारगाह में किसी की सिफ़ारिश कर सके. जो कुछ उनके सामने हो रहा है या हो चुका है और जो कुछ उनके बाद होने वाला है, वह सब जानता है. और लोग उसके इल्म में से किसी चीज़ का भी अहाता नहीं कर सकते, लेकिन जिसे वह चाहे सिखा दे. उसकी कुर्सी तमाम आसमानों और ज़मीन का अहाता किए हुए है. और उसके लिए दोनों यानी आसमानों और ज़मीन की हिफ़ाज़त करना मुश्किल नहीं है. और वह बड़ा आलीशान बड़ा अज़मत वाला है.
256. दीन में किसी तरह की ज़बरदस्ती नहीं है. बेशक हिदायत गुमराही से अलग ज़ाहिर हो चुकी है. फिर जो ताग़ूत यानी गुमराह करने वालों से इनकार कर दे और अल्लाह पर ईमान ले आए, तो उसने एक ऐसी मज़बूत रस्सी थाम ली, जो टूट ही नहीं सकती. और अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
257. अल्लाह ईमान वालों का कारसाज़ है. वह उन्हें गुमराही की तारीकियों से निकाल कर ईमान के नूर की तरफ़ लाता है. और जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनके सरपरस्त ताग़ूत हैं, जो उन्हें ईमान के नूर से निकाल कर कुफ़्र की तारीकियों की तरफ़ ले जाते हैं. वही असहाबे दोज़ख़ हैं. वे उसमें हमेशा रहेंगे.
258. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उस शख़्स को नहीं देखा, जो सिर्फ़ इसलिए कि अल्लाह ने उसे बादशाहत दी थी, इब्राहीम अलैहिस्सलाम से ख़ुद अपने ही परवरदिगार के बारे में उलझ पड़ा.
जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उससे कहा कि मेरा परवरदिगार वह है, जो ज़िन्दगी भी बख़्शता है और मौत भी देता है. फिर वह कहने लगा कि मैं भी ज़िन्दगी देता हूं और मारता भी हूं. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक अल्लाह सूरज को मशरिक़ से निकालता है, तो तुम उसे मग़रिब की तरफ़ से निकाल लाओ. फिर वह काफ़िर हैरान रह गया. और अल्लाह ज़ालिमों की क़ौम को हिदायत नहीं देता.
259. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! या उस शख़्स की तरह जो उस बस्ती में से होकर गुज़ारा, जो अपनी छतों पर पलटी हुई पड़ी थी. उसने कहा कि अल्लाह उसकी मौत के बाद उसे कैसे ज़िन्दा करेगा. फिर अल्लाह ने उसे सौ बरस तक मुर्दा रखा. फिर उसे ज़िन्दा करके उठा दिया. इसके बाद उससे कहा गया कि कितनी देर पड़े रहे. उसने कहा कि एक दिन या एक दिन से भी कम. फिर उससे कहा गया कि नहीं, बल्कि तुम इसी हालत में सौ बरस तक पड़े रहे. अब अपने खाने और पीने की चीज़ों को देखो कि बासी भी नहीं हुईं. और अब अपने गधे को देखो कि उसकी हड्डियां भी बोसीदा हो गईं. और यह इसलिए है कि हम तुम्हें लोगों के लिए अपनी क़ुदरत की निशानी बनाएं. अब हड्डियों की तरफ़ देखो कि हम उन्हें कैसे जोड़कर ढांचा बनाते हैं और फिर उस पर गोश्त चढ़ाते हैं. जब यह माजरा उस पर ज़ाहिर हो गया, तो वह कहने लगा कि अब मैं जान गया हूं कि बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
260. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वाक़िया भी याद करो कि जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे दिखा दे कि तू मुर्दों को कैसे ज़िन्दा करता है. उनसे कहा गया कि क्या तुम्हें इसका यक़ीन नहीं है. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि क्यों नहीं, बिल्कुल यक़ीन है, लेकिन मैं अपनी आंखों से इसलिए देखना चाहता हूं कि मेरे दिल को भी ख़ूब इत्मीनान हो जाए. उनसे कहा गया कि फिर तुम चार परिन्दे लो और उन्हें ज़िबह करके हर पहाड़ पर उनके टुकड़े रख दो. फिर उन्हें बुलाओ, वे तुम्हारे पास दौड़े आ जाएंगे. और जान लो कि बेशक अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
261. जो लोग अपना माल अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं, उनके ख़र्च की मिसाल उस दाने की मानिन्द है जिससे सात बालियां निकलें और हर बाली में सौ दाने हों. और अल्लाह जिसके लिए चाहता है, इज़ाफ़ा कर देता है. और अल्लाह बड़ा वुसअत वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
262. जो लोग अपना माल अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं और फिर ख़र्च करने के बाद किसी तरह का अहसान नहीं जताते हैं और न अज़ीयत देते हैं, तो उनके परवरदिगार के पास उनका अज्र है. और आख़िरत में उन्हें न कोई ख़ौफ़ होगा और न वे ग़मगीन होंगे.
263. मांगने वाले के साथ नरमी से बात करना और दरगुज़र करना उस सदक़े से बेहतर है, जिसे लेने के बाद उसे अज़ीयत पहुंचे. और अल्लाह बेनियाज़ बड़ा हलीम है.
264. ऐ ईमान वालो ! अपना सदक़ा अहसान जताकर और अज़ीयत देकर ज़ाया न किया करो. जो लोगों को दिखाने के लिए माल ख़र्च करता है और न अल्लाह पर ईमान रखता है और न आख़िरत के दिन पर यक़ीन रखता है, उसके सदक़े की मिसाल उस चिकने पत्थर की तरह है, जिस पर थोड़ी सी ख़ाक पड़ी हो, फिर उस पर तेज़ बारिश हो, तो वह उसे वहीं सख़्त व साफ़ करके छोड़ दे. वे लोग अपनी कमाई पर कोई इख़्तियार नहीं रखते. और अल्लाह काफ़िरों की क़ौम को हिदायत नहीं देता.
265. और जो लोग अपना माल अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करने और अपने एतक़ाद को मज़बूत करने के लिए ख़र्च करते हैं, तो उनकी मिसाल उस बाग़ की मानिन्द है, जो किसी ऊंची जगह पर हो और उस पर तेज़ बारिश बरसे, तो उसमें दोगुने फल पैदा हों. और अगर तेज़ बारिश न हो, तो उसके लिए हल्की फुहार भी काफ़ी हो. और जो आमाल तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है.
266. क्या तुममें से कोई यह पसंद करेगा कि उसके पास खजूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो, जिसके नीचे नहरें बहती हों और उसके लिए उसमें हर क़िस्म के फल और मेवे हों. और ऐसे में वह बूढ़ा हो जाए और उसके छोटे व कमज़ोर बच्चे हों. उस बाग़ में एक बगुला आ जाए, जिसमें आग हो और उससे वह बाग़ जल जाए. ऐसे में उसका क्या हाल होगा. इसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी निशानियां वाज़ेह तौर पर बयान करता है, ताकि तुम ग़ौर व फ़िक्र करो.
267. ऐ ईमान वालो ! उस पाकीज़ा कमाई में से और उसमें से जो हमने तुम्हें ज़मीन में से दिया है अल्लाह की राह में ख़र्च करो और बुरे माल को अल्लाह की राह में देने का इरादा भी मत करो. अगर वही माल तुम्हें दिया, तो तुम ख़ुद उसे हरगिज़ नहीं लोगे, सिवाय इसके कि तुम नज़रें चुराओ. और तुम जान लो कि बेशक अल्लाह बड़ा बेनियाज़, सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
268. शैतान तुम्हें फ़क़ीरी यानी तंगदस्ती से डराता है और बेहयाई का हुक्म देता है. और अल्लाह तुमसे मग़फ़िरत और फ़ज़ल का वादा करता है. और अल्लाह बड़ा वुसअत वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
269. वह जिसे चाहता है, हिकमत अता करता है. और जिसे हिकमत अता की गई, तो उसे बड़ी भलाई मिल गई. सिर्फ़ वही लोग नसीहत हासिल करते हैं, जो अक़्लमंद हैं.
270. और जो कुछ तुम ख़र्च करो या कोई नज़र यानी मन्नत भी मानो, तो बेशक अल्लाह उसे जानता है. और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं है.
271. अगर तुम सदक़ा ज़ाहिर करके दो, तो यह भी अच्छा है. इससे दूसरों को तरग़ीब मिलेगी. और अगर तुम उसे पोशीदा रखो और ज़रूरतमंदों को पहुंचा दो, तो यह तुम्हारे हक़ में बेहतर है. और अल्लाह इसकी वजह से तुम्हारे कुछ गुनाहों को तुम्हारे आमालनामे से मिटा देगा. और जो आमाल तुम करते हो, अल्लाह उनसे ख़ूब वाक़िफ़ है.
272. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! लोगों को हिदायत देना तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत देता है. तुम कह दो कि और जो माल तुम अल्लाह की राह में ख़र्च करोगे, वह तुम्हारे अपने फ़ायदे के लिए है. और अल्लाह की ख़ुशनूदी के सिवा किसी दूसरे काम में ख़र्च करना मुनासिब नहीं है. और तुम जो कुछ भी अल्लाह की राह में ख़र्च करोगे, तो उसका तुम्हें पूरा-पूरा अज्र दिया जाएगा. और तुम पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
273. यह सदक़ा उन ज़रूरतमंदों के लिए है, जो अल्लाह की राह में रोक दिए गए हैं और किसी मजबूरी की वजह से ज़मीन में चल फिर नहीं सकते. उनके हाल से नावाक़िफ़ होने की वजह से लोग उन्हें अमीर समझते हैं. तुम उन्हें उनकी सूरत से ही पहचान लोगे. वे लोगों से बिल्कुल भी सवाल नहीं करते कि कहीं आजिज़ी न करनी पड़े. और तुम जो माल भी ख़र्च करो, तो बेशक अल्लाह उसे ख़ूब जानता है.
274. जो लोग अल्लाह की राह में रात दिन अपना माल पोशीदा और ज़ाहिर ख़र्च करते हैं, उनके लिए उनके परवरदिगार के पास उनका अज्र है. और क़यामत के दिन उन्हें न कोई ख़ौफ़ होगा और न वे ग़मगीन होंगे.
275. जो लोग ब्याज़ खाते हैं, वे क़यामत के दिन खड़े नहीं हो सकेंगे. लेकिन वे उस शख़्स की तरह खड़े होंगे, जिसे शैतान ने छूकर बदहवास कर दिया हो. यह इसलिए है कि वे कहते थे कि तिजारत भी तो ब्याज़ की तरह है.
हालांकि अल्लाह ने तिजारत को हलाल क़रार दिया है और ब्याज़ को हराम किया है. फिर जिसके पास उसके परवरदिगार की तरफ़ से नसीहत पहुंची, तो वह ब्याज़ से बाज़ आ गया. जो पहले गुज़र चुका है, वह उसी का है. और इसका मामला अल्लाह के सुपुर्द है. और जो लोग इसके बाद भी ब्याज लें, तो वे असहाबे दोज़ख़ हैं. वे उसमें हमेशा रहेंगे.
276. अल्लाह ब्याज़ को मिटाता है और सदक़े को बढ़ाता है और अल्लाह किसी भी काफ़िर और गुनाहगार को पसंद नहीं करता.
277. बेशक जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे और पाबंदी से नमाज़ पढ़ते रहे और ज़कात अदा करते रहे, तो उनके लिए उनके परवरदिगार के पास उनका अज्र है. और क़यामत के दिन उन्हें न कोई ख़ौफ़ होगा और न वे ग़मगीन होंगे.
278. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह से डरते रहो और जो कुछ भी ब्याज़ में से बाक़ी रह गया है, उसे छोड़ दो. अगर तुम ईमान वाले हो.
279. फिर अगर तुमने ऐसा नहीं किया, तो अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से जंग के लिए तैयार रहो. और अगर तुमने तौबा की है, तो तुम्हारे लिए तुम्हारा असल माल जायज़ है. न तुम किसी पर ज़ुल्म करो और न तुम पर ज़ुल्म किया जाएगा.
280. और अगर कोई तंगदस्त तुम्हारा क़र्ज़दार हो, तो उसे ख़ुशहाली तक मोहलत दो. और तुम्हारा क़र्ज़ को मुआफ़ कर देना तुम्हारे हक़ में बेहतर है. अगर तुम जानते हो.
281. और उस दिन से डरो, जिस दिन तुम सब अल्लाह की तरफ़ लौटाये जाओगे. फिर हर किसी को उसका पूरा-पूरा बदला दिया जाएगा, जो कुछ उसने कमाया होगा. और किसी पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
282. ऐ ईमान वालो ! जब तुम किसी मुक़र्रर मुद्दत तक के लिए आपस में क़र्ज़ का लेनदेन करो, तो उसे लिख लिया करो. और तुम्हारे दरम्यान जो कातिब हो, उसे चाहिए कि इंसाफ़ के साथ लिखे और लिखने से इनकार न करे, जैसा कि उसे अल्लाह ने सिखाया है. फिर वह लिख दे और मज़मून क़र्ज़ लेने वाला लिखवाए. और वह अल्लाह से डरे, जो उसका परवरदिगार है. और लिखवाते वक़्त कुछ भी कमी न करे. फिर अगर क़र्ज़ लेने वाला कम अक़्ल या माज़़ूर या ख़ुद लिखवाने के क़ाबिल नहीं हो, तो उसका सरपरस्त इंसाफ़ के साथ लिखवा दे. और अपने लोगों में से दो मर्दों को गवाह बना लो. फिर अगर दो मर्द न मिलें, तो एक मर्द और दो औरतें हों. ये उन लोगों में से हों, जिन्हें तुम गवाही के लिए पसंद करते हो. उन दोनों में से अगर एक औरत भूल जाए, तो उसे दूसरी याद दिला देगी. और जब भी गवाहों को बुलाया जाए, तो वे इनकार न करें. और क़र्ज़ थोड़ा हो या बहुत हो, उसके दस्तावेज़ लिखवाने में काहिली न करो. यह अल्लाह के नज़दीक ज़्यादा मुंसिफ़ाना कार्रवाई है. और गवाही के लिए भी मज़बूत दलील है. और इससे किसी तरह का शक व शुबहा भी नहीं रहेगा. लेकिन जब नक़द सौदा हो, जिसका लेनदेन तुम आपस में करते रहते हो, तो तुम पर उसके न लिखने में कोई गुनाह नहीं है. और जब आपस में सौदा करो, तो गवाह बना लिया करो. और क़ातिब दस्तावेज़ और गवाह मामला करने वालों में किसी का भी नुक़सान न करें. और अगर तुम लोग ऐसा करोगे, तो बेशक यह तुम पर गुनाह होगा. और अल्लाह से डरते रहो और अल्लाह तुम्हें मामले की तालीम देता है और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
283. और अगर तुम सफ़र में हो और कोई लिखने वाला न मिले, तो रहन रख लिया करो. फिर अगर तुम में से एक को दूसरे पर ऐतबार हो, तो जिसकी दयानत पर ऐतबार किया गया है, उसे चाहिए कि अमानत को वापस कर दे और अल्लाह से डरता रहे, जो उसका परवरदिगार है. और तुम गवाही को छुपाया न करो. और जो गवाही छुपाता है, तो बेशक वह दिल से गुनाहगार है. और जो आमाल तुम करते हो, अल्लाह उनसे ख़ूब वाक़िफ़ है.
284. जो कुछ आसमानों में और जो कुछ ज़मीन में है, सब अल्लाह ही का है. और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है अगरचे तुम उसे ज़ाहिर करो या उसे पोशीदा रखो, अल्लाह तुमसे उसका हिसाब लेगा. फिर वह जिसे चाहे बख़्श दे और जिसे चाहे अज़ाब दे. और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
285. रसूल उस सब पर ईमान रखते हैं, जो उन पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल किया गया और उनके साथ मोमिन भी. सब अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों पर ईमान रखते हैं. वे कहते हैं कि हम अल्लाह के रसूलों के दरम्यान किसी तरह का फ़र्क़ नहीं करते और हमने तेरा हुक्म सुना और इताअत क़ुबूल की. ऐ हमारे परवरदिगार ! हम तुझसे मग़फ़िरत चाहते हैं और हमें तेरी तरफ़ ही लौटना है.
286. अल्लाह किसी को उसकी ताक़त से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देता. जिसने नेकी कमाई, तो अपने फ़ायदे के लिए ही कमाई और जिसने गुनाह किया, तो उसका वबाल उसी पर होगा. ऐ हमारे परवरदिगार ! अगर हम भूल जाएं या ख़ता कर बैठें, तो हमें गिरफ़्त में मत लेना. ऐ हमारे परवरदिगार ! और हम पर उतना भी बोझ न डाल जैसा तूने हमसे पहले के लोगों पर डाला था. और ऐ हमारे परवरदिगार ! हम पर इतना बोझ भी न डाल, जिसे उठाने की हम में ताक़त नहीं. और हमारी ख़ताओं को दरगुज़र कर और हमारे गुनाहों को बख़्श दे और हम पर रहम फ़रमा. तू ही हमारा मौला है. फिर काफ़िरों की क़ौम के मुक़ाबले में हमारी मदद फ़रमा.